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क्यों आसानी से घी में हो जाती है मिलावट, कैसे होता है पूरा गेम? समझें डिमांड और सप्लाई का गणित

Tirupati Laddu: आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में मिलने वाले लड्डू प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलने के बाद सियासी हड़कंप मच गया है. इससे करोड़ों हिंदुओं की आस्था को चोट पहुंची है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इसे लेकर रिपोर्ट मांगी है तो वहीं सीएम चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि पिछली जगन मोहन रेड्डी सरकार में प्रसाद बनाने में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था. वहीं टीडीपी के प्रवक्ता ने कहा कि इतने कम रेट पर गैर-मिलावटी घी सप्लाई कर पाना नामुमकिन है. डेयरी भैंस के दूध का घी फिलहाल 460 रुपये प्रति किलो और गाय के दूध का घी 470 रुपये प्रति किलो में बेच रही हैं. 25 रुपये पैकेजिंग, ट्रांसपोर्ट का भी जोड़ दें तो यह कीमत 485-495 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है. मंदिर की देख-रेख करती है TTD इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कीमतों की असलियत को देखें तो यह समझना बेहद ही मुश्किल है कि कैसे तमिलनाडु के दिंडीगुल स्थित एआर डेयरी फूड प्राइवेट लिमिटेड तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) को 320 रुपये प्रति किलो रुपये कीमत पर प्योर घी सप्लाई कर रही थी. टीटीडी तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर मंदिर की देखरेख करती है. घी में जानवरों की चर्बी पाए जाने के बाद एआर डेयरी फूड्स प्राइवेट लिमिटेड को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है. भारत में घी में मिलावट का एक प्रमुख कारण दूध और वनस्पति वसा के बीच कीमत में बड़ा अंतर है. रिफाइंड पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल अब 120-125 रुपये प्रति किलो की दर से थोक में बिक रहे हैं. ज्यादा महंगे देशी रेपसीड/सरसों और मूंगफली तेल की थोक कीमत 135-150 रुपये प्रति किलो है. वसा तेल और भी सस्ता यानी केवल 80-85 रुपये प्रति किलो रुपये है. जालसाज कर देते हैं खेल कीमतों में ज्यादा अंतर होने के कारण ही कई बदमाश मैन्युफैक्चरर्स जनवरों की चर्बी घी में मिला देते हैं. कीमतें ज्यादा होने का कारण दूध वसा की उपलब्धता भी है. कॉरपोरेटिव डेयरियां हर रोज 600 लाख किलो दूध खरीदती हैं. इनमें से वे 450 लाख किलो दूध बेच देती हैं. बाकी 50 लाख किलो से दही, लस्सी और अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं. इससे लगभग 100 लाख किलो चीजों के निर्माण के लिए बचता है, जैसे स्किम्ड मिल्क पाउडर और वसा. निजी डेयरियां भी बराबर मात्रा में दूध पाउडर और वसा का प्रसंस्करण करती हैं. क्या है इस पूरी प्रक्रिया का गणित भैंस और गाय के दूध के लिए औसत 5% वसा सामग्री लेते हुए, इससे 200 लाख किलो प्रति दिन (सहकारी और निजी डेयरियों से) संगठित डेयरियों की ओर से 3.65 लाख टन (एलटी) का वार्षिक घी उत्पादन होगा. इस आंकड़े की तुलना 250-260 लीटर वनस्पति तेल की उपलब्धता से करें, जिसमें 150-160 लीटर आयात और 100-105 लीटर घरेलू स्रोतों से उत्पादन शामिल है. इससे घी तुलना में दुर्लभ और प्रीमियम वसा बन जाता है. प्रतिष्ठित डेयरी ब्रांड जैसे गुजरात का अमूल, कर्नाटक का नंदिनी और तमिलनाडु के आविन के अलावा हटसन एग्रोस, डोडला डेयरी और हैरिटेज फूड जैसे प्राइवेट प्लेयर्स भी भारी मात्र में घी बेचते हैं. अमूल एक महीने में 9000-10000 टन घी बेचता है. जबकि नंदिनी 3000 टन और आविन 1500 टन घी बेचता है. आसान नहीं प्योर घी हासिल करना कंज्यूमर पैक में बेचे जाने वाले घी का अधिकतम खुदरा मूल्य (12% जीएसटी सहित) 600 रुपये से 750 रुपये प्रति लीटर तक है, जिसमें एक लीटर में केवल 910 ग्राम होता है. इन सबकी वजह से टीटीडी जैसे संगठनों के लिए अपने लड्डुओं और अन्य प्रसादों के लिए असली और हाई क्वॉलिटी वाला घी हासिल करना आसान नहीं होता. टीटीडी की खुद की सालाना जरूरत 5,000 टन है, जो अपने आप में काफी बड़ी है. रिवर्स नीलामी प्रक्रिया, जिसमें सबसे कम बोली लगाने वाले को सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट मिलता है, जिससे सबसे अच्छे नतीजे तो नहीं मिलेंगे. 475 रुपये प्रति किलोग्राम से कम कीमत पर सप्लाई किए जाने वाला कोई भी घी मिलावट का पता लगाने के लिए मानक गैस क्रोमैटोग्राफी टेस्ट में फेल हो सकता है. None

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