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रूमेटाइड अर्थराइटिस और ऑस्टियोअर्थराइटिस में क्या अंतर है? कैसे होता है दोनों का इलाज

Written by Kishori Mishra | Published : October 11, 2024 10:05 AM IST अर्थराइटिस एक ऐसा शब्द है जो जोड़ों को प्रभावित करने वाली कई बीमारियों को बताने के लिए किया जाता है। अर्थराइटिस के दो सबसे प्रचलित प्रकार रूमेटाइड अर्थराइटिस (RA) और ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA) हैं। वैसे तो दोनों ही अर्थराइटिस से जोड़ों में दर्द और परेशानी होती हैं लेकिन ये दोनो अर्थराइटिस अपने कारणों, लक्षणों और इलाज के विकल्पों में काफी अलग-अलग होते हैं। इन अंतरों को समझना बीमारी के प्रभावी इलाज़ और मैनेजमेंट के लिए महत्वपूर्ण होता है। आइए डॉ . अरविंद मेहरा, वरिष्ठ निदेशक, आर्थोपेडिक, पारस हेल्थ, गुरुग्राम से जानते हैं इस विषय के बारे में विस्तार से- रूमेटाइड अर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसका अर्थ है कि इस बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से अपने ही ऊतकों पर हमला करता है। RA के मामले में इम्यून सिस्टम सिनोवियल झिल्ली को टारगेट करता है। सिनोवियल झिल्ली जोड़ों में एक सुरक्षात्मक परत होती है। इस पर हमला होने से सूजन और दर्द होता है, जो अक्सर शरीर के दोनों हिस्सों को एक साथ प्रभावित करता है। रूमेटाइड अर्थराइटिस किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन यह आमतौर पर जीवन के मध्य उम्र के दौरान प्रकट होता है। दूसरी ओर ऑस्टियोअर्थराइटिस मुख्य रूप से समय के साथ जोड़ों पर होने वाले घिसाव से जुड़ी बीमारी है। यह तब होता है जब कार्टिलेज (हड्डियों के सिरों को सहारा देने वाला चिकना टिश्यू ऊतक) टूट जाता है। इससे प्रभावित जोड़ों में दर्द और बेचैनी हो सकती है, खासकर लंबे समय तक काम करने के बाद यह दर्द हो सकता है। OA सबसे ज्यादा बूढ़े लोगों में होता है और आम तौर पर यह धीरे-धीरे विकसित होता है। यह एक जोड़ या एक विशिष्ट क्षेत्र को दूसरों की तुलना में ज्यादा प्रभावित करता है। More News जब कोई व्यक्ति जोड़ों के दर्द की शिकायत लेकर डॉक्टर के पास जाता है, तो उसके लक्षणों के आधार पर पता चलता है कि व्यक्ति रूमेटाइड अर्थराइटिस से पीड़ित है या ऑस्टियोअर्थराइटिस से। रूमेटाइड अर्थराइटिस में मरीजों को अक्सर सुबह के समय बहुत ज़्यादा अकड़न का अनुभव होता है जो एक घंटे या उससे ज़्यादा समय तक रह सकता है, साथ ही थकान, हल्का बुखार और भूख कम लगना जैसे अन्य लक्षण भी महसूस होते हैं। इसके अलावा त्वचा के नीचे रूमेटाइड नोड्यूल्स नामक गांठें बन सकती हैं। दर्द का दोनों तरफ होना रूमेटाइड अर्थराइटिस का संकेत होता है। वहीं ऑस्टियोअर्थराइटिस आमतौर पर धीरे-धीरे विकसित होता है और अक्सर एक ख़ास जोड़ में इसका अनुभव किया जाता है। ऑस्टियोअर्थराइटिस से जुड़ा दर्द कामकाज करने से बदतर हो जाता है और आराम करने से ठीक हो जाता है। इसके लक्षणों में काम न करने के दौरान अकड़न, साथ ही जोड़ को हिलाने पर चटकने या पीसने जैसी आवाज़ें आना शामिल होती है। ऑस्टियोअर्थराइटिस से पीड़ित लोगों को अपनी उंगलियों के जोड़ों पर हड्डी के उभार भी दिखाई दे सकते हैं। रूमेटाइड अर्थराइटिस और ऑस्टियोअर्थराइटिस दोनों में ही जोखिम फैक्टर्स एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं, जैसे परिवार में पहले किसी को यह बीमारी होना और ज्यादा वजन होना बहुत बड़ा रिस्क फैक्टर होता है। हालांकि कुछ फैक्टर एक प्रकार के अर्थराइटिस के दूसरे प्रकार की तुलना में विकसित होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए महिलाओं को रूमेटाइड अर्थराइटिस होने का खतरा ज्यादा होता है, जबकि ऑस्टियोअर्थराइटिस अक्सर जोड़ों की चोटों, उम्र बढ़ने और जोड़ों पर बार-बार पड़ने वाले तनाव से होता है। दुर्भाग्य से वर्तमान में किसी भी प्रकार के अर्थराइटिस का कोई इलाज नहीं है, लेकिन कई इलाज़ के विकल्प लक्षणों को मैनेज करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं। रूमेटाइड अर्थराइटिस के मामले में इलाज़ का उद्देश्य बीमारी की प्रगति को धीमा करना और सूजन को कम करना होता है। सामान्य इलाजों में नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs), कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और डिजीज-मोडिफाइंग एंटीरुमेटिक ड्रग्स (DMARDs) शामिल हैं। फिजिकल थेरेपी और एक्सरसाइज भी जोड़ों के कार्य और गतिशीलता को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। ऑस्टियोअर्थराइटिस के लिए इलाज़ अक्सर दर्द से राहत और जोड़ों के कार्य को बनाए रखने पर केंद्रित होते हैं। इसके इलाज़ के विकल्पों में NSAIDs, एसिटामिनोफेन, टॉपिकल ट्रीटमेंट और जोड़ों के इंजेक्शन शामिल हो सकते हैं। वजन कम करना भी इस बीमारी में महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि ज्यादा वजन जोड़ों पर अतिरिक्त तनाव डाल सकता है, खासकर ऑस्टियोअर्थराइटिस में वजन का नियंत्रण बहुत जरूरी होता है। दोनों ही मामलों में जोड़ों के पूरे स्वास्थ्य में सुधार और दर्द को कम करने के लिए शारीरिक गतिविधि आवश्यक होती है। रूमेटाइड अर्थराइटिस और ऑस्टियोअर्थराइटिस के बीच अंतर को समझना प्रभावी मैनेजमेंट और इलाज़ के लिए महत्वपूर्ण होता है। दोनों बीमारियां किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को काफ़ी हद तक प्रभावित कर सकती हैं। दोनों बीमारियों के इलाज़ और देखभाल के लिए अलग-अलग तरीकों की आवश्यकता होती है। दोनों बीमारियों के लक्षणों को पहचानकर व्यक्ति अपने इलाज़ विकल्पों को बेहतर ढंग से नेविगेट कर सकते हैं और अपने स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। दवा, लाइफस्टाइल में बदलाव या शारीरिक इलाज़ के माध्यम से अर्थराइटिस का मैनेजमेंट ज्यादा संतोषजनक और सक्रिय जीवन प्रदान कर सकता है। Also Read : अर्थराइटिस में क्या नहीं खाना चाहिए? डायटीशियन से जानिए Don’t Miss Out on the Latest Updates. Subscribe to Our Newsletter Today! Enroll for our free updates Thank You for Subscribing Thanks for Updating Your Information None

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