सार्वजनिक क्षेत्र और देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों ने चालू वित्त वर्ष की जून तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की बढ़ोतरी दर घटकर 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। इस तरह एसबीआई भी उन विश्लेषकों में शामिल हो गया है जिन्होंने जून तिमाही में वास्तविक वृद्धि दर में कमी आने का अनुमान लगाया है। भाषा की खबर के मुताबिक, एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट में कहा कि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) की बढ़ोतरी पिछले साल की तुलना में सात प्रतिशत से नीचे गिरकर 6.7-6.8 प्रतिशत रह जाएगी। खबर के मुताबिक, अर्थशास्त्रियों ने कहा कि हमारे नाउकास्टिंग मॉडल के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही के लिए अनुमानित जीडीपी वृद्धि 7.0-7.1 प्रतिशत होगी, और सकल मूल्य वर्द्धन 6.7-6.8 प्रतिशत रहेगा। गौरतलब है कि पिछले साल जून तिमाही और उससे पहले मार्च तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.8 प्रतिशत रही थी। कई विश्लेषक जून तिमाही में आर्थिक गतिविधियों में नरमी की तरफ इशारा कर रहे हैं, जो मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती और आम चुनावों के कारण कम सरकारी खर्च की वजह से है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अनिश्चित वैश्विक वृद्धि परिदृश्य और मुद्रास्फीति में नरमी को देखते हुए मौद्रिक नीति में ढील की गुंजाइश बनती है। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि उनका ग्रोथ का अनुमान 41 प्रमुख संकेतकों पर आधारित है। उन्होंने बिक्री वृद्धि में कमी और विनिर्माण कंपनियों के लिए कर्मचारियों की लागत बढ़ने का उल्लेख किया है। इसमें कहा गया है कि इस बैकग्राउंड में प्रॉफिट मार्जिन में गिरावट आई है और इससे विनिर्माण क्षेत्र की रफ्तार घटेगी। रिपोर्ट कहती है कि अगर बैंकिंग, वित्त और बीमा कंपनियों को छोड़ दिया जाए, तो चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंपनियों ने राजस्व में मात्र पांच प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। वहीं उनका परिचालन लाभ एक प्रतिशत घटा है। हालांकि, एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने 7.5 प्रतिशत के वृद्धि अनुमान को बरकरार रखा है। यह भारतीय रिजर्व बैंक के 7.2 प्रतिशत वृद्धि के अनुमान से अधिक है। रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है। भू-राजनीतिक दबाव जारी रहने के बीच प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में संभावित मंदी और श्रम बाजारों में कमजोरी संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है। भारत के लिए सकारात्मक पक्ष यह है कि जुलाई की शुरुआत से ही दक्षिण-पश्चिम मानसून में तेजी आ गई, जिससे बारिश की कमी कम हो गई है। Latest Business News None
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