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ग्रेनेड अटैक, गोलियों की तड़तड़ाहट… जब इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल मक्का में चली 14 दिनों की खूनी जंग

इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल माने जाने वाला मक्का भी एक बार 14 दिनों की खूनी जंग देख चुका है। जो किसी ने नहीं सोचा था, वो मंजर इस स्थल ने आज से 45 साल पहले देखा था। मक्का में गोलियों की तड़तड़ाहट थी, ग्रेनेड अटैक करने पड़े थे और सैंकड़ों लोगों की जान चली गई थी। माना जाता है कि मक्का पर हुए उस एक हमले ने सऊदी अरब की किस्मत हमेशा के लिए बदल दी थी। किसी जमाने में पश्चिमी देशों से प्रभावित माना जाने वाला सऊदी भी कट्टरता की तरफ बढ़ चला था। इतिहास के पन्ने टटोलने पर पता चलता है कि 20 नवंबर 1979 को मक्का में नमाज अदा करने के लिए भारी संख्या में लोग आए थे। मक्का के लिए वो कोई आम दिन जैसा ही था, शांत माहौल था, अल्लाह को याद किया जा रहा था। लेकिन कुछ अजीब भी पहली बार देखने को मिला। हथियारबंद लोग मक्का के अंदर दाखिल हो चुके थे। जहां पर सुरक्षाकर्मियों को भी बदूंक रखने की इजाजत नहीं होती थी, वहां हथियारों से लैस कुछ लोगों का आना हैरान करने वाला था। तभी एक शख्स माइक के तरफ बढ़ा और कुछ निर्देश देने लगा। इस शख्स का नाम जुहेमान अल ओतायबी था, वह अति कट्टरपंथी सुन्नी मुस्लिम सलाफ़ी गुट की अगुआई करने वाला बद्दू मूल का युवा सऊदी प्रचारक था। उसने कहा कि ‘माहदी आ गए हैं’। अब इस्लाम के जानकार बताते हैं कि माहदी को धरती के रक्षक के रूप में देखा जाता है, जो कयामत से पहले राज करते हुए बुराई का नाश करते हैं। अब इस कट्टरपंथी को लगता था कि सऊदी अरब इस्लाम के रास्ते से पूरी तरह भटक चुका है, वो सिर्फ पश्चिमी देशों के इशारे पर काम कर रहा है। इसी वजह से उस अन्याय को खत्म करने के लिए उसके लड़ाके मक्का के अंदर दाखिल हुए थे। अब लड़ाके मक्का में मौजूद थे, लेकिन सरकार के लोग दूसरे देशों में व्यस्त चल रहे थे। तब की खबरों के मुताबिक घटना के वक्त तत्कालीन क्राउन प्रिंस फहद बिन अब्दुल अजीज अपने अमले के साथ ट्यूनिशिया गए थे। जबकि सऊदी नेशनल गार्ड्स के प्रमुख प्रिंस अब्दुल्ला बिन अब्दुल अजीज मोरक्को में थे। मक्का में उस हमले के दौरान जिस तरह से आरोपी हवाई फायरिंग कर रहे थे, एक चीज साफ हो चुकी थी, साजिश काफी पहले बनाई गई थी। हथियारों की एक खेप भी मक्का मदीना में दाखिल करवा दी गई थी। 14 दिनों तक ऐसे ही खूनी संघर्ष चलता रहा, 153 लोगों की मौत हुई, 560 घायल हुए। वैसे उस हमले के दौरान आरोपियों ने सिर्फ सऊदी के लोगों को अपने कब्जे में रखा था, दूसरे देश से आए पर्यटकों को रिहा करता रहा, यह बताने के लिए काफी है कि नफरत और गुस्सा सिर्फ सऊदी अरब के खिलाफ ही था। अब मक्का को क्योंकि उन कट्टरपंथियों से मुक्त करवाना था, सबसे पहले पूरे इलाके की बिजली काट दी गई थी। उसके बाद सेना दाखिल हुई, ग्रेनेड से भी अटैक किया गया और आखिर में फ्रांस और पाकिस्तान की सेना ने भी मदद का हाथ बढ़ाते हुए उस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाया। 9 जनवरी 1980 के दिन ओतायबी समेत 63 लोगों को सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दे दी गई थी। अब एक तरफ सऊदी अरब में मक्का पर इतना बड़ा हमला हुआ था, दूसरी तरफ उसकी विचारधारा भी पूरी तरह सुन्नी इस्लाम से प्रभावित होने लगी। कुछ कट्टरपंथियों के हमले के बाद ऐसी उम्मीद की गई थी कि सऊदी अरब और ज्यादा आक्रमक अंदाज में विकास पर ध्यान देगा, लेकिन उसने उससे उलट उन कट्टरपंथियों की कट्टर विचारधारा को आगे बढ़ाने का फैसला किया। इसी वजह से मक्का में हमले के बाद सऊदी अरब में महिलाओं पर पाबंदियों की झड़ी लगी शुरू हो चुकी थी। सऊदी के किसी भी अखबार में महिलाओं की तस्वीर लगाने पर भी बैन लग चुका था। टीवी स्क्रीन्स पर भी महिलाओं को दिखने की अनुमति नहीं थी, इसी तरह स्कूल में इस्लामिक शिक्षा को जरूरत से ज्यादा समय दिया जाने लगा। अब मक्का में हुई उस एक साजिश को मिडिल ईस्ट जारी वर्तमान तनाव से भी जोड़कर देखा जाता है, माना जाता है कि मुस्लिम देशों में भी जो आपस की रंजिशें चल रही हैं, उसकी रूपरेखा इस 45 साल पहले हुई खूनी जंग ने खड़ी की थी। None

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