Premanand ji maharaj Latest News in Hindi: राधा श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम बहुत कम लोग ही जानते होंगे. वो भले ही अभी मथुरा वृंदावन में रहते हों, लेकिन उनकी पैदाइश कानपुर में हुई थी. कानपुर से वो कैसे शिव की भक्ति में काशी पहुंचे, लेकिन रासलीला देख वो कैसे मथुरा आए और यहीं के होकर रह गए. आइए आपको बताते हैं उनकी जिंदगी की पूरी कहानी... प्रेमानंद महाराज का जन्म कहां हुआ कानपुर देहात के सरसौल थाना क्षेत्र के अखरी गांव में प्रेमानंद महाराज (Premanand maharaj birthplace) का जन्म हुआ था. उनका बचपन में नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय था. उनके पिता शंभू पांडे और मां रामा देवी पांडे थीं. खेती-किसानी के परिवार में वो जन्मे थे. उनके एक भाई भी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे. प्रेमानंद महाराज का झुकाव बेहद कम उम्र में ही धर्म आध्यात्म की ओर हो गया. वो बड़े भाई के साथ श्री मद्भागवत का पाठ करने लगे. हनुमान चालीसा का वो असंख्या बार पाठ कर लेते थे. 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार दीक्षा ले ली. तब उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी पड़ा. यह बात भी कम लोगों को ही मालूम है कि उनके दादा ने भी संन्यास ग्रहण कर लिया था. प्रेमानंद जी महाराज ने राधा राधवल्लभी संप्रदाय में संन्यास संग दीक्षा ली. वहीं उनका नाम अनिरुद्ध पांडे की जगह आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी पड़ा. मथुरा वृंदावन आगमन से पहले वो ज्ञानमार्गी थे. हालांकि अन्य साधु संतों के कहने पर उन्होंने श्रीकृष्ण लीला देखी और फिर वो भक्ति मार्गी परंपरा के बड़े उपासक बन गए. प्रेमानंदजी महाराज कैसे पहुंचे वाराणसी प्रेमानंद घर से निकलने के बाद संन्यास के प्रारंभिक समय में काफी विचलित रहे. पहले नंदेश्वर धाम में रहे और फिर भूखे-प्यासे इधर उधर भटकने के बाद बनारस पहुंचे. वहां गंगा घाट पर स्नान ध्यान और तुलसी घाट पर पूजा करने लगे. वहीं भिक्षा में मिले भोजन से जीवन व्यापन करने लगे. प्रेमानंद तुलसी घाट पर पीपल के पेड़ के नीचे शिव शंकर की उपासना करते रहते थे. वाराणसी में ही हनुमान विश्वविद्यालय में चैतन्य लीला और रासलीला कार्यक्रम देखकर उनका मन कृष्ण भक्ति के लिए हिलोरे मारने लगा.इसी चाह में वो काशी से मथुरा आ गए. वृंदावन का राधावल्लभ मंदिर प्रेमानंदजी महाराज के गुरु श्रीहित गौरांगी शरण महाराज रहे. गुरु ने ही प्रेमानंद का श्रीकृष्ण भक्ति की ओर ध्यान खींचा.पहले बांके बिहारी मंदिर और फिर वृंदावन का राधावल्लभ मंदिर उनकी साधना की जगह बनी. राधावल्लभ मंदिर में ही उनकी भेंट गौरांगी शरण महाराज से हुई. उनसे मिलते ही उनका जीवन बदल गया. गौरांगी शरण महाराज के सानिध्य में वो करीब 10 साल रहे. यहीं श्री राधा राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा लेने के साथ उनका नाम प्रेमानंद महाराज पड़ा. संक्रमण से किडनी खराब हुईं युवावस्था में 35 साल की उम्र में उन्हें एक बार पेट में भयानक संक्रमण हुआ. उन्हें रामकृष्ण मिशन के अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहीं मेडिकल जांच में पता चला कि उनकी दोनों किडनियां अब काम करना बंद कर चुकी हैं और वो कुछ सालों के ही मेहमान हैं, लेकिन यह उनकी अटूट श्रद्धा और जिजीविषा उन्हें आज भी जीवित रखे हुए है. श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम प्रेमानंद महाराज का वृंदावन वराह घाट स्थित श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम में उनका स्थायी निवास है. प्रेमानंद की भक्ति साधनामय जीवन राधा रानी की सेवा में समर्पित है. महाराज रात में करीब तीन बजे छटीकरा रोड पर श्री कृष्ण शरणम सोसायटी से रमणरेती में बने अपने आश्रम श्री हित राधा केलि कुंज में आते हैं. वो अपने भक्तों के साथ दो किलोमीटर से लंबी पदयात्रा पर निकलते हैं. उनके पीछे हजारों भक्तों का सैलाब भी उनका दर्शन करने को उमड़ता है.पहले वो वृंदावन की पूरी परिक्रमा पर भी निकलते थे लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वो ऐसा नहीं करते हैं. किडनी का नाम राधा-कृष्ण रखा प्रेमानंद महाराज की दोनों किडनियां कई वर्षों से खराब हैं. उनका पूरा दिन डायलिसिस यानी खून को साफ करने की प्रक्रिया चलती रहती है. हालांकि उनका प्रवचन कार्यक्रम रोज चलता है.कई भक्तों ने उन्हें अपनी किडनी दान देने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. उनके एक गुर्दे का नाम कृष्ण और दूसरे का राधा है. प्रेमानंदजी महाराज के शिष्यों और अनुयायियों में क्रिकेटर विराट कोहली, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसे शीर्ष हस्तियां भी हैं. और पढ़ें जौनपुर के गिरिधर मिश्रा कैसे बने रामभद्राचार्य, कैसे खोई आंखों की रोशनी, फिर 22 भाषाओं के प्रकांड पंडित बने None
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