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Paras Patthar Mystery: क्या है पारस पत्थर, जिसके लिए मुस्लिम हमलावरों ने भारत पर किए कई हमले? अलाउद्दीन खिलजी भी था दीवाना

What is Paras Patthar Mystery: पारस पत्थर. इस नाम को आपने तमाम किस्से कहानियों में सुना होगा. कहीं इसे जादुई पत्थर कहा गया है, तो कहीं चमत्कारी पत्थर. सिर्फ हमारी परंपरा में ही नहीं, बल्कि बाहरी सभ्यताओं में भी ऐसे पत्थर का जिक्र मिलता है. कहीं पर टच स्टोन के रूप में, तो कहीं फिलॉस्फर्स स्टोन के रूप में. आज की रिपोर्ट में हमने समझने की कोशिश की है- इसी पारस पत्थर का रहस्य. इसके रहस्य के पन्ने हम खोलते हैं इतिहास के मध्य युग से. यानी साल 1000 से लेकर 16वीं शताब्दी तक, जब पारस पत्थर हासिल करने के लिए कई खूनी जंग तक हुई. ये पन्ने हमें बताते हैं- पारस पत्थर की परिकल्पना आखिर हमारी परंपरा मे आई कहां से. धरती के केंद्र से निकलता लावा धरती की सबसे रहस्यमयी दुनिया तो इसके परतों के भीतर मानी जाती है. यहां की हलचल के बारे में विज्ञान को सिर्फ अनुमान है. धरती के केन्द्र में लावा जैसे पिघलते धातु और चट्टानें लाखों बरसों में कैसे परिवर्तित होती है, इसकी कोई सटीक गणना नहीं. धरती की कोख से विज्ञान ने जिन खनिजों की खोज की, वो बरसों की शोध का नतीजा है, लेकिन एक खनिज ऐसा भी है, जिसका इतिहास और विज्ञान दोनों ही रहस्यमयी है. पारस पत्थर को लेकर एक बड़ी जंग का जिक्र मध्य युग के मशहूर लेखक मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी किताब पद्मावत में किया है. इस किताब में चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मावती के पास पारस पत्थर होने की बात कही गई है. चित्तौढ़गढ़ से निकाले जाने के बाद राघव चेतन नाम का ज्योतिषाचार्य जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के पास पहुंचता है, तो रानी पद्मावती की खूबसूरती के साथ पारस पत्थर की चमत्कारी शक्तियों का जिक्र करता है. राघव चेतन की बातों में आकर अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़गढ़ पर हमला करता है. इसका अंजाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है. लेकिन पारस पत्थर का पौराणिक रहस्य उस जंग में भी सुलझा नहीं. सदियों तक. पारस पत्थर के उस रहस्य को समझने के लिए हम आपको लेकर आए हैं मध्य प्रदेश के रायसेन, जहां के किले पर हुए थे कई आक्रमण. चमत्कारी पत्थर को हासिल करने के लिए इस किले में बहाई गईं थी खून की नदियां. पारस पत्थर के लिए 14 हमले! पारस पत्थर के लिए जो साम्राज्य कई मर्तबा तबाह हुआ, उनमें से एक जीती जागती निशानी है मध्य प्रदेश का ये रायसेन किला। 12वीं सदी में परमार राजा रायसिंह का बनाया ये किला 16वीं शताब्दी तक मुस्लिम आक्रमणकारियों का 14 बार शिकार हुआ. हर आक्रमण के साथ किले में हजारों लोगों का खून बहा। किले के राजाओं की हार के बाद कई बार रानियों ने जौहर किए. इनमें सबसे बड़ा जौहर राजा पूरनमल और शेरशाह सूरी की जंग के बाद हुआ था. जब हार और जंग में पति पूरनमल की हत्या के बाद रानी रत्नावली ने सैकड़ों रानियों के साथ जौहर किया. शेरशाह सूरी ने पूरममल को हराने के बाद कुछ साल तक इसी किले से शासन चलाया था. ये किला उसे इतना भाया कि इसकी सुरक्षा के लिए अफगानिस्तान से तोपें मंगवा लीं. पारस पत्थर की तलाश करते करते शेरशाह खुद भी दुनिया से कूच कर गया, लेकिन तब से लेकर अब तक 8 सौ बरसों में वो पारस पत्थर ना तो किसी के हाथ लगा और ना ही पूरे किले में इसका पता चला- आखिर परमार राजा ने वो चमत्कारी पत्थर कहां छिपा दिया? क्या है किले में पारस पत्थर का रहस्य? आखिर क्या है किले में पारस पत्थर का रहस्य, जिसकी तलाश में आज भी लोग आते हैं, किले के कोने कोने में कई जगहें खुदी हुई मिलती हैं. किले की नींव के आस पास से लेकर मैदान और तलाब तक कई बार खोद चुके हैं. लेकिन पारस पत्थर...? रायसेन के राजाओं के बारे में मशहूर था, कि इनकी रियासत तो छोटी है, लेकिन दौलत अकूत है. इस दौलत की वजह उस दौर में पारस-पत्थर को बताया गया. हमारी पौराणिक परंपरा में पारस पत्थर का स्वामी वैसे तो भगवान विष्णु और गणेश को माना जाता है. लेकिन हजारवीं सदी में एक किताब आई थी योग वशिष्ठ. इस किताब में पारस पत्थर के चमत्कारिक गुणों का जिक्र है. इस दौर के इतिहास पर गौर करें, तो तब तक भारत की दौलत को लेकर पूरी दुनिया में सुर्खियां फैल चुकी थी, विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में लूट मचाना शुरु कर दिया था. रायसेन का किला पारस पत्थर को लेकर ऐसे ही हमले का शिकार बना था. 10 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला रायसेन का किला और पारस पत्थर का रहस्य. आप जैसे जैसे इस किले की चौहद्दी में आगे बढ़ते हैं, हर कदम पर इस किले पुरानी विरासत दस्तक देती नजर आती है. माना जाता है, पारसमणि नहीं होती, तो ये किला भी अपने दौर में इतना भव्य नहीं होता. ऐसा इसलिए भी माना जाता है कि 12वीं सदी के परमार राजा के पास इतनी दौलत नहीं थी कि वो 10 किलोमीटर के क्षेत्र में इतना बड़ा किला बनाने का सपना भी देख सकें. मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर किए हमले पांच पांच महलों, कोस मीनार, तलाब, कचहरी, इत्रदान और इतने बड़े शिव मंदिर वाले भव्य किले की स्थापत्य कला देखते ही बनती है. किले में 9 भव्य द्वार हैं और 13 बुर्ज. इसके साथ 10 किलोमीटर के दायरे में चारों तरफ पहरेदारी के लिए ऊंचे ऊंचे शिखर. कहते हैं इसी पारस पत्थर की बदौलत परमार राजा के पास अकूत दौलत जमा होती गई. इस दौलत के साथ परमार राजा राय सिंह धनवान तो हो गए, लेकिन यही दौलत उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल भी बनी. 12वीं सदी के बाद जितने भी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर हमला किया, उनमें से ज्यादतर ने राय सिंह की दौलत लूटने के लिए किले पर हमला बोला. हालांकि पुरातत्व विभाग की तरफ से ये पूरा वर्जित क्षेत्र है। लेकिन किले के बीच इस तलाब में आज तक पारस पत्थर की तलाश में उतरते हैं लोग. कहा जाता है परमार राजा राय सिंह ने इसी तालाब में पारस पत्थर फेंक दिया था. अगर ये मान्यता सही है, तो फिर आज तक किसी के हाथ क्यों नहीं लगा पारस पत्थर? क्या कोई अदृश्य ताकत इसकी रखवाली करती है? पारस पत्थर आज तक नहीं मिलने के पीछे लोग दो अदृश्य ताकतें मानते हैं। एक तो रानी रत्नावली की आत्मा, जो अकाल मृत्यु के बाद आज तक भटकती है और दूसरा एक जिन्न, जो पारस पत्थर की रखवाली करता है. तालाब में जो गया, सो चला गया... इस जिन्न से पारस पत्थर को मुक्त करने के लिए कई लोग तंत्र मंत्र का सहारा लेते हैं. किले में तांत्रिक विधियों की आजमाईश के साथ पारस पत्थर की तलाशी की गई. लेकिन इस दौरान एक डरावनी बात और पता चली। किले के अंदर जितने भी लोगों पारस पत्थर तलाशने की कोशिश की, उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया. ये कोई संयोग नहीं, बल्कि ऐसा हर बार देखा गया है। पारस पत्थर की तलाश में तालाब में उतरा शख्स कुछ दिनों बाद या तो डिप्रेशन में चला जाता है या फिर सिजोफ्रेनिया का शिकार हो जाता है. फिर भी किले से पारस पत्थर की तलाश खत्म नहीं हुई. किले में न पारस पत्थर की तलाश खत्म हुई और ना ही इसके रहस्य से परदा उठा, क्योंकि हर बार नाकामी के साथ ये बात पक्की मानी जाती है, कि अगर परमार राजा रायसिंह के पास वो जादुई पत्थर नहीं होता तो ये किला बन ही नहीं पाता. पारस पत्थर को लेकर तमाम ऐसी मिथकीय कहानियां इतिहास और पुराण से जुड़ी हुई हैं, जिनका कोई ठोस आधार आज के युग में नहीं मिलता. लेकिन ये भी सच है, कि पारस पत्थर का जिक्र यूरोप से लेकर मिस्र, और ग्रीक जैसी सभ्यताओं में इस चमत्कारी पत्थर का जिक्र मिलता है. लेकिन विज्ञान धरती पर ऐसे किसी भी पत्थर, चट्टान या तत्व से इंकार करता है जो पलक झपकते ही लोहे को सोना बना दे. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे, कि सोने की उत्पति अपने आप में धरती के बड़े रहस्यों में से एक है. सोना कोई खनिज नहीं बल्कि रासायनिक तत्व सोने के बारे में सबसे मशहूर कहावत है- दुनिया की हर चीज जो चमकती है, वो सोना नहीं हो सकती. सोना अपनी इसी चमक की वजह से पूरी दुनिया में सबसे लोकप्रिय है. सोना सबके आकर्षण का केन्द्र इसलिए भी है, क्योंकि ये दुर्लभ है. और जितना दुर्लभ है, उतना ही महंगा. और सोना दुर्लभ इसलिए है, क्योंकि ये धरती का तत्व है ही नहीं. जी हां, सोना कोई खनिज नहीं है, बल्कि एक रसायनिक तत्व है. और मौजूदा वैज्ञानिक सिद्धांतों के मुताबिक, सोना किसी दूसरे तत्व से बनाया ही नहीं जा सकता. वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक, धरती पर सोना ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों से आया. ये सुपरनोवा और न्यूट्रॉन तारों की टक्कर से पैदा हुआ इसलिए सोना एक खनिज नहीं, एक रसायनिक तत्व है. सोने के प्रत्येक परमाणु में 79 प्रोटॉन होते हैं. सोने केसभी प्रोटॉन एक जैसा रसायनिक व्यावहार करते हैं, जो इसे अनूठा तत्व बनाते हैं. धरती पर सोना 4 अरब साल पहले उल्कापिंडों की टक्कर के साथ आया. वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक अगर धरती पर उल्कापिंडों की टक्कर नहीं हुई होती, तो यहां न पानी होता, न जीवन और ना ही सोना. अब सवाल ये है कि, जब धरती का नहीं सोना तो खदानों में कैसे मिलता है? ब्रह्मांड के सुपरनोवा और न्यूट्रॉन ग्रहों की टक्कर में कितना सोना पैदा हुआ, ये अपने आप में रहस्य है, लेकिन उन ग्रहों के टुकड़े जो धरती पर गिरे, उनका इम्पैक्ट इतना था, कि ये धरती के कोर यानी केन्द्र तक धंसते गए. इसीलिए आज तक सोने की कोई मात्रा धरती के क्रस्ट यानी उपरी सतह पर नहीं मिली. बल्कि इसके लिए गहरी खुदाई करनी पड़ती है. चट्टान में ठोस रूप में नहीं मिलता सोना सोना खदान की किसी एक चट्टान में ठोस रूप में नहीं मिलता, बल्कि ये चट्टानों में बिखरा होता है. अमेरिकी जियोलॉजिकल सोसायटी के मुताबिक धरती पर सभ्यता के विकास के साथ अब तक 2 लाख 44 हजार मिट्रीक टन सोने का पता लगाया जा चुका है. लेकिन पूरी धरती पर सोना कितना है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. तो सवाल है कि सोने के साथ पारस पत्थर की कहानी कैसे जुड़ी. सोने की पहली खुदाई का इतिहास तो करीब 4500 साल पहले मिस्र सभ्यता में मिलता है. ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक सबसे पहले सोना के चट्टानों की खुदाई मिस्र के नूबिया नाम के जगह पर जोसिमोस नाम के एक शख्स ने की थी. तब सोने की मूल्य किसी ने नहीं पहचाना था. लेकिन इसकी चमक ने समय के साथ इसे इतना लोकप्रिय और मूल्यवान बनाया कि दुनिया की सारी सभ्यताओं में इसका इस्तेमाल बेशकीमती पदार्थ के रूप में होने लगा. 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