अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है जिसे अमेरिका ने ‘‘मूर्खतापूर्ण’’ तरीके से पनामा को सौंप दिया था। ट्रंप ने अपनी इस बात के पीछे तर्क दिया कि अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली इस अहम नहर से गुजरने के लिए जहाजों से बेवजह शुल्क वसूला जाता है। अमेरिका ने 1900 के दशक की शुरुआत में इस नहर का निर्माण किया था और उसका मकसद अपने तटों के बीच वाणिज्यिक और सैन्य जहाजों के आवागमन को सुविधाजनक बनाना था। वाशिंगटन ने 1977 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि के तहत 31 दिसंबर 1999 को जलमार्ग का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया था। यह नहर जलाशयों पर निर्भर है और 2023 में पड़े सूखे से यह काफी प्रभावित हुई थी, जिसके कारण देश को इससे गुजरने वाले जहाजों की संख्या को सीमित करना पड़ा था। इसके अलावा नौकाओं से लिया जाने वाला शुल्क भी बढ़ा दिया गया था। हालांकि, इस साल मौसम सामान्य होने के साथ नहर पर ट्रांसपोर्टेशन सामान्य हो गया है लेकिन शुल्क में बढ़ोत्तरी अगले साल भी कायम रहने की उम्मीद है। पनामा अमेरिका का एक अहम सहयोगी है और नहर इसकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। पनामा के राष्ट्रपति ने समय-समय पर अनेक मुद्दों पर ट्रंप का साथ दिया है। ट्रंप ने अपने संबोधन में कहा कि जब उनका दूसरा कार्यकाल शुरू होगा और उस दौरान अगर कुछ सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया तो वह पनामा नहर को अमेरिका को पूर्ण रूप से, शीघ्रता से और बिना किसी सवाल के वापस करने की मांग करेंगे। ट्रंप के संबोधन के बाद पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने एक वीडियो जारी करके कहा ,‘‘”नहर का प्रत्येक वर्ग मीटर पनामा का है और आगे भी उनके देश का ही रहेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ पनामा के लोगों के कई मुद्दों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन जब हमारी नहर और हमारी संप्रभुता की बात आती है तो हम सभी एकजुट हैं।’’ क्या एलन मस्क अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं? डोनाल्ड ट्रम्प ने इस चर्चा पर कही ये बात पनामा नहर अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ने वाला कृत्रिम जलमार्ग है। पनामा नहर के निर्माण की परिकल्पना काफी समय से की जा रही थी क्योंकि दक्षिण अमेरिका के सिरे से घूमकर एक महासागर से दूसरे महासागर तक जाना महंगा और समय लेने वाला काम था। इसका निर्माण 1904 और 1914 के बीच हुआ था, जिसका श्रेय मुख्य रूप से अमेरिकी प्रयासों को जाता है। उससे पहले इस क्षेत्र की चुनौतीपूर्ण भौगोलिक स्थिति के कारण नहर का निर्माण कठिन माना जाता था। 1903 तक कोलंबिया ने पनामा पर नियंत्रण रखा, जब अमेरिका समर्थित तख्तापलट ने पनामा को स्वतंत्रता दिलाने में मदद की। बदले में, अमेरिका को 1903 की हे-बुनौ-वरिला संधि के माध्यम से नहर बनाने और उसे चलाने के अधिकार और पनामा नहर क्षेत्र के स्थायी अधिकार प्राप्त हुए। नहर खुलने के बाद से इसका नियंत्रण पनामा और अमेरिका के बीच विवाद का विषय बन गया, जिसके कारण 1964 में इस क्षेत्र में दंगे भी हुए। कई बार बातचीत के प्रयास भी किए गए लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली। 1970 के दशक में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जिमी कार्टर ने भी संधि का विरोध किया था लेकिन 1976 में चुनावी जीत के बाद उनका नज़रिया बदल गया। अगले साल, टोरिजोस-कार्टर संधियों पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे अमेरिका को पनामा नहर की तटस्थता के लिए किसी भी खतरे के खिलाफ़ सैन्य रूप से रक्षा करने की शक्ति मिली। इसके अलावा, पनामा नहर 31 दिसंबर, 1999 को पनामावासियों को सौंप दी जाएगी। देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लिए पढ़ें का LIVE ब्लॉग (एपी के इनपुट के साथ) None
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