अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के मतदान में अब केवल चार दिन बचे हैं, और चुनावी माहौल में तनाव और उत्साह दोनों का मिश्रण दिखाई दे रहा है। मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस के बीच मुकाबला काफी कड़ा हो गया है। 2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन को हराकर अमेरिकी राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ तय किया था। उस समय हिलेरी क्लिंटन ने लोकप्रियता वोट में जीत हासिल की थी, लेकिन फिर भी ट्रंप राष्ट्रपति बन गए थे। यह घटना अमेरिकी चुनावी तंत्र की जटिलताओं को उजागर करती है, जिसे समझना आज के चुनावों के दौर में बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के चुनावों में परिणाम सीधे तौर पर लोकप्रिय वोट से तय नहीं होते हैं। यह प्रणाली थोड़ी जटिल है और इसके कारण कभी-कभी मतदाता की इच्छाएं भी अनसुनी रह जाती हैं। इसे समझने के लिए इलेक्टोरल कॉलेज की संरचना को जानना जरूरी है। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं, जो हर राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर दिए जाते हैं। जैसे, कैलिफ़ोर्निया, जो अमेरिका का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, को 55 इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, जबकि छोटे राज्यों, जैसे व्योमिंग, को केवल 3 वोट मिलते हैं। इस प्रकार, कुछ राज्यों का चुनावी प्रभाव काफी अधिक होता है, जिससे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को “स्विंग स्टेट्स” पर अधिक ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। जब मतदान का दिन आता है, तो अमेरिकी नागरिक वास्तव में इलेक्टर्स के एक समूह के लिए वोट देते हैं, जो उनकी पसंद का प्रतिनिधित्व करेंगे। यदि कोई उम्मीदवार किसी राज्य में लोकप्रिय वोट जीतता है, तो उसे आमतौर पर सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं। उदाहरण के लिए, 2020 में जो बाइडेन ने कैलिफ़ोर्निया में जीत दर्ज की, और इस प्रकार सभी 55 इलेक्टोरल वोट उनके खाते में आए। हालांकि, मेन और नेब्रास्का जैसे कुछ राज्यों में विभाजित इलेक्टोरल वोट की अनुमति है, जो इसे और भी जटिल बनाता है। यह समझना आवश्यक है कि कभी-कभी लोकप्रिय वोट का विजेता चुनाव में हार क्यों जाता है। 2016 में, ट्रंप ने कुछ छोटे राज्यों में मामूली जीत हासिल की, जैसे विस्कॉन्सिन और मिशिगन, जिसने उन्हें इलेक्टोरल कॉलेज में बहुमत दिलाया, जबकि क्लिंटन ने अधिक लोकप्रिय वोट प्राप्त किया। यह तथ्य कई लोगों के लिए चौंकाने वाला था और यह सवाल उठाता है कि क्या यह प्रणाली आज के अमेरिका के लिए उचित है या नहीं। इलेक्टोरल कॉलेज की विवादास्पदता का मुख्य कारण यह है कि इसे उच्च और निम्न जनसंख्या वाले राज्यों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया था। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में, कुछ राज्यों का चुनावी प्रभाव अत्यधिक बढ़ गया है, जिससे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार विशेष रूप से उन राज्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जहां परिणाम अनिश्चित होते हैं। इसके कारण, कुछ मतदाता, विशेष रूप से उन राज्यों में, जो प्राथमिकता में नहीं होते, अपनी आवाज खो देते हैं। इस चुनाव प्रणाली की जटिलता से यह साबित होता है कि अमेरिका की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। क्या हमें इस प्रणाली को संशोधित करने की आवश्यकता है? क्या सभी वोटों को समान महत्व मिलना चाहिए? ये ऐसे सवाल हैं जो अमेरिकी जनता लंबे समय से उठा रही है। इनका उत्तर आगामी चुनावों में खोजा जाएगा। इस प्रकार, 2016 का चुनाव सिर्फ एक राजनीतिक मुकाबला नहीं था, बल्कि यह अमेरिकी लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित हुआ। 2024 के चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मतदाता अपनी आवाज को प्रभावी ढंग से व्यक्त कर पाते हैं या नहीं, और क्या इलेक्टोरल कॉलेज की प्रणाली में कोई बदलाव देखने को मिलता है। None
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