रिपोर्ट- ऋतु राज मुजफ्फरपुर: बिहार सरकार और शिक्षा विभाग न केवल राज्य में बेहतर शिक्षा व्यवस्था का दावा करती है बल्कि स्कूल की चौखट तक बच्चों को पहुंचाने के लिए कई प्रयोग भी करती है. जिससे गांव के बच्चे बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकें और उनका भविष्य संवर सके. लेकिन इस बीच बिहार के मुजफ्फरपुर से एक ऐसे स्कूल की तस्वीर सामने आई है जो बिहार के शिक्षा व्यवस्था की सारे दावों पर सवाल खड़े कर रही है. डिजिटल और हाईटेक शिक्षा सुविधा का दावा करने वाले बिहार में एक स्कूल ऐसा भी है जहां बच्चे पेड़ की छांव में नीचे बैठ कर पढ़ने को मजबूर हैं. मामला जिले के औराई प्रखंड में आने वाले बसुआ गांव में स्तिथ राजकीय बुनियादी विद्यालय बसुआ की है. इसकी स्थापना देश की आजादी से पहले साल 1937 में हुई थी. यह स्कूल प्रखंड का एक मात्र बुनियादी विद्यालय है. यहां पहली क्लास से आठवीं तक कक्षाएं चलती हैं लेकिन, स्कूल काफी पुराना होने के कारण यह विद्यालय पूरी तरह टूट चुका है. इसमें सिर्फ एक क्लास रूम बचा है और उसकी भी स्थिति इतनी जर्जर है कि डर बना रहता है. इसी डर के चलते कि कभी कोई हादसा ना हो जाए और बच्चों को नुकसान न हो इसके चलते बच्चों को उस रूम में न पढ़ा कर पेड़ के नीचे बैठा कर पढ़ाया जाता है. अगर कैंपस में यह पेड़ नहीं होता तो शायद बच्चे पढ़ भी नहीं पाते. इस स्कूल की सबसे खास बात यह है की यह 3.5 एकड़ की जमीन में बना हुआ है. इसके अलावा इस स्कूल के पास 10 बीघा की अपनी जमीन है जिस जमीन पर टेंडर के साथ लोग खेती करते हैं और उससे जो पैसा आता है वह स्कूल के बैंक खाते में जमा होता है. इस काम से स्कूल के बैंक खाते में करीब 18 लाख़ रुपए जमा है. इसका रिकॉर्ड सरकार के पास भी है. मतलब यह एक ऐसा बुनियादी विद्यालय है जो सरकार को ही पैसा देता है और उसके बावजूद इस स्कूल का हाल बदहाल है. बसुआ गांव के रहने वाले ग्रामीण दिनकर शाही ने लोकल 18 को बताया कि इस स्कूल में भवन निर्माण और यहां की व्यवस्था को दुरुस्त कराने को लेकर उन्होंने कई बार जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र भी लिखा लेकिन उसका कुछ असर नहीं हुआ. इस स्कूल की स्थिति पूरी तरह जर्जर है और बच्चों को मजबूरन पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ना पड़ रहा है. आपको बता दें कि ये वो स्कूल है जहां एक समय शिक्षक और छात्र-छात्राओं के रहने के लिए हॉस्टल तक बनाया गया था. आज वह पूरी तरह जर्जर हो चुका है. इस स्कूल के कमरे अब जंगल और झाड़ियों में तब्दील होने लगे हैं. लोगों को अब स्कूल आने-जाने में भी डर लगता है. इतना ही नही स्कूल पहुंचने के लिए जो रास्ता है वो लखनदेई नदी से होकर जाता है. बगल में नदी की धारा है जिसमें कभी भी हदसा हो सकता है. इस रास्ते के किनारे इतने पतले हैं कि बच्चों को आने जाने में भी दिक्कत होती है. Tags: Local18 अमिताभ बच्चन की 1 बड़ी गलती, अनिल कपूर के लिए साबित हुई वरदान, रातोंरात बन गए सुपरस्टार Godda Food: इस दुकान का चिकन रोल बड़ा फेमस, 4 घंटे में 10 हज़ार की बिक्री बाप-बेटे ने मिलकर बनाई ऐसी फिल्म, सिनेमाघरों में मच गई थी धूम, बॉक्स ऑफिस पर एकछत्र चला था मूवी का राज फैशन क्वीन अनन्या पांडे, यूथ के लिए बनीं स्टाइल आइकन, कूल और ट्रेंडी लुक के लिए आप भी करें फॉलो काले होठों को गुलाबी करने के लिए नहीं पड़ेगी लिप बाम की जरूरत, अपनाएं ये प्रभावी देसी नुस्खे Inspirational Story: बुरहानपुर के किसान की बेटी, थाईलैंड में दिखाएगी दम, इंटरनेशनल टूर्नामेंट में हुई सिलेक्ट Who Is Hasan Mahmud: कौन है वो बांग्लादेशी पेसर... जिसने 'पंजा' खोलकर भारत में रचा इतिहास, कोहली- रोहित को भी नहीं छोड़ा धान की फसल में लगा है भूरा फुदका, तो इस चीज का करें छिड़काव, सिंचाई का भी जानें सही तरीका 'पाइप से चढ़कर मेरे कमरे में आते थे...' जब धोखा देते हुए सलमान खान को गर्लफ्रेंड ने पकड़ा, सालों बाद हुआ शॉकिंग खुलासा None
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