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भगवान विष्णु का वह छठा अवतार, जिसने धरती पर अत्याचारी राजाओं का कर दिया अंत, पढ़ें पौराणिक कथा

Bhagwan Vishnu Ka Chhatha Avatar: सनातन धर्म की धार्मिक मान्यताओं व पौराणिक वृत्तान्तों के अनुसार भृगुकुल तिलक, अजर-अमर, अविनाशी, विश्व के अष्ट चिरंजीवियों में सम्मिलित, शस्त्र व शास्त्र के महान ज्ञाता परम प्रतापी भगवान परशुराम जी का जन्म वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया के पावन दिन माता रेणुका के गर्भ से हुआ था. भगवान परशुराम जी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय सप्तऋषि महर्षि जमदग्नि के पाँचवें पुत्र थे. भगवान परशुराम जी के पिता महर्षि जमदग्नि वेद-शास्त्रों के महान ज्ञाता थे और वो सप्तऋषियों में से एक थे. हमारे शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम अजर-अमर हैं और वह किसी समाज विशेष के आदर्श ना होकर बल्कि वो संपूर्ण वैदिक सनातन धर्म को मानने वालें सभी सनातनियों के आदर्श हैं. उनको अष्ट चिरंजीवियों में से एक चिरंजीवी माना गया हैं, उनका उल्लेख हमें रामायण में माता सीता के स्वंयवर के समय भगवान श्रीराम के काल में भी मिलता है तो उनका उल्लेख हमें महाभारत के भगवान श्रीकृष्ण के काल में भी मिलता है. उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था. श्रीमद्भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा कल्कि पुराण में भी भगवान परशुराम जी का उल्लेख मिलता है. धर्म के ज्ञाता कहते हैं कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित होंगे, ऐसी धार्मिक मान्यता है. ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे. पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत पर भगवान परशुराम जी की तपोस्थली है और वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए. यह भी पढ़ें: Bedroom Vastu Tips: इस दिशा में बेडरूम वालों को मुश्किल से होती है संतान, मिसकैरेज की भी आशंका, जानें वास्तु उपाय भगवान परशुराम जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. वह भगवान शिव के अनन्य परम भक्त हैं. इन्हें भगवान शिव से ही विशेष परशु प्राप्त हुआ था जिसके चलते इनका नाम परशुराम हो गया. वैसे इनका नाम तो राम था, किन्तु शिव के द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ गया था.सप्तऋषि महर्षि जमदग्नि के पुत्र होने के कारण इन्हें ‘जामदग्न्य’ भी कहा जाता हैं. धरती को पाप से मुक्त करने के लिए अवतार : जब परशुराम का धरती पर जन्म हुआ तब उस समय दुष्ट व राक्षसी प्रवृत्ति के बहुत सारे राजाओं का पृथ्वी पर बोलबाला था. उन्हीं में से एक राजा ने उनके पिता महर्षि जमदग्नि को मार दिया था, इससे परशुराम बहुत कुपित हुए और उन्होंने उस दुष्ट राजा का वध किया. उन्होंने राक्षसी प्रवृत्ति के सभी राजाओं का वध करके पृथ्वीवासियों को भयमुक्त किया था. भगवान परशुराम जन्म कथा : भृगु ने अपने पुत्र के विवाह के विषय में जाना तो बहुत प्रसन्न हुए तथा अपनी पुत्रवधू से वर माँगने को कहा. उनकी पुत्रवधू सत्यवती ने अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र की कामना की. भृगु ने उन दोनों को ‘चरु’ भक्षणार्थ दिये तथा कहा कि ऋतुकाल के उपरान्त स्नान करके सत्यवती गूलर के पेड़ तथा उसकी माता पीपल के पेड़ का आलिंगन करे तो दोनों को पुत्र प्राप्त होंगे. माँ-बेटी के चरु खाने में उलट-फेर हो गयी. दिव्य दृष्टि से देखकर भृगु ऋषि पुनः वहाँ पधारे तथा उन्होंने सत्यवती से कहा कि तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणोचित व्यवहार करेगा तथा तुम्हारा बेटा ब्राह्मणोचित होकर भी क्षत्रियोचित आचार-विचार करने वाला होगा. सत्यवती के बहुत अनुनय-विनय करने पर भृगु ने मान लिया कि सत्यवती का बेटा ब्राह्मणोचित रहेगा, किंतु पोता क्षत्रियों की तरह कार्य करने वाला होगा. सत्यवती के पुत्र जमदग्नि मुनि हुए उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह किया. रेणुका के पाँच पुत्र हुए, जो क्रमशः रुमण्वान, सुषेण, वसु, विश्वावसु तथा पाँचवें पुत्र का नाम परशुराम था और वही क्षत्रियोचित आचार-विचार वाले पुत्र थे. परशुराम की गाथाएं : भगवान परशुराम गुरुजनों, माता-पिता की आज्ञा का पालन हर हाल में करते थे. एकबार जमदग्नि मुनि ने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चारों बेटों को माँ रेणुका की हत्या करने का आदेश दिया किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ. जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दिया फिर उन्होंने परशुराम को आदेश दिया कि वो अपनी माँ की हत्या करें.आज्ञाकारी परशुराम ने तुरन्त पिता की आज्ञा का पालन किया. जमदग्नि ऋषि ने प्रसन्न होकर परशुराम से वर माँगने के लिए कहा, परशुराम ने सबसे पहले वर से माँ का पुनर्जीवन माँगा और फिर अपने भाईयों को क्षमा कर देने के लिए कहा. जमदग्नि ऋषि ने परशुराम को आशीर्वाद देते हुए कहा कि वो सदा अजर-अमर रहेगा. यह भी पढ़ें; Bhagyank 2: इस भाग्यांक वाले होते हैं सबसे वफादार, लेकिन ‘दोस्त’ ही करने लगते हैं शोषण, जानें ​विशेष बातें एक दूसरी कथा के अनुसार ऋषि वशिष्ठ से शाप का भाजन बनने के कारण सहस्त्रार्जुन की मति मारी गई थी तब सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया. इस युद्ध में उन्होंने सहस्त्रार्जुन की भुजाएं और मस्तक काट दिया था. ऐसा भी कहा जाता है कि उस काल में हैहयवंशीय राजाओं का अत्याचार था. भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी. हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था. एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि ऋषि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया. जब परशुराम घर पहुँचे तो बहुत दुखी हुए और क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय वंश-बेल का विनाश करने की कसम खाई. पिता के वियोग में भगवान परशुराम की माता चिता पर सती हो गयीं, पिता के शरीर पर 21 घाव को देखकर भगवान परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह इस धरती से समस्त हैहयवंशीयों का संहार कर देंगे. इसके बाद पूरे 21 बार उन्होंने पृथ्वी से हैहयवंशीयों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की. इसी कसम के तहत उन्होंने इस वंश के लोगों से महिलाओं को छोड़कर बार-बार युद्ध कर उनका 21बार समूल नाश कर दिया था. तभी से शायद यह भ्रम फैल गया कि भगवान परशुराम ने धरती पर से क्षत्रियों का समूल नाश कर दिया था, लेकिन धर्म के ज्ञाता कहते है कि परशुराम ने महिलाओं का वध नहीं किया था जिससे बाद में वंश चलता रहा. उन्होंने संमत पंचक क्षेत्र (कुरुक्षेत्र) में हैहयवंशियों के रुधिर से पाँच कुंड भर दिये थे. उसी रुधिर से परशुराम ने अपने पितरों का तर्पण किया उस समय ऋचीक ऋषि साक्षात प्रकट हुए तथा उन्होंने परशुराम को ऐसा कार्य करने से रोका. ऋत्विजों को दक्षिणा में समस्त पृथ्वी प्रदान की. ब्राह्मणों ने कश्यप की आज्ञा से उस वेदी को खंड-खंड करके बाँट लिया, अतः वे ब्राह्मण जिन्होंने वेदी को परस्पर बाँट लिया था, खांडवायन कहलाये. 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