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विलुप्त होती कला को राधा ने बचाया, आज पारंपरिक शिल्प की उन्नति और समृद्धि के साथ आत्मनिर्भर हो रही महिलाएं

आर्या झा /मधुबनी: जिले का रैयाम गांव अब एक नई पहचान बना रहा है. इसका श्रेय जाता है गांव की महिलाओं द्वारा अपनाए गए पारंपरिक सिक्की कला को. सिक्की कला, जो कि खस घास (सिक्की) से निर्मित होती है, आज के समय में एक महत्वपूर्ण हस्तशिल्प बन चुका है. इस कला के तहत महिलाएं घरेलू वस्त्रों से लेकर सजावटी सामान तक विभिन्न उत्पाद तैयार करती हैं, जो की न केवल स्थानीय बाजार में बिकते हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहे जाते हैं. सिक्की कला की उत्पत्ति और प्रक्रिया सिक्की कला का मुख्य घटक खस घास होता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘सिक्की’ कहा जाता है. यह घास खेतों में उगती है और इसके रंग और बनावट के कारण इसे शिल्प कार्य में प्रमुखता से उपयोग किया जाता है. इस कला में खस घास को पहले साफ किया जाता है और फिर इसे प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है. रंगने के बाद, इसे सूखाया जाता है और फिर विभिन्न आकारों और डिजाइन में काटा जाता है. इस प्रक्रिया के बाद, इन कटे हुए हिस्सों को जोड़कर और आकार देकर विभिन्न वस्तुएं बनाई जाती हैं. राधा कुमारी का योगदान पाहि गांव के प्रमुख हस्त शिल्पकार राधा कुमारी ने सिक्की कला को न केवल अपने गांव में लोकप्रिय बनाया है, बल्कि इस कला को नया जीवन भी दिया है. राधा कुमारी ने बताया, हम खेतों से खस घास लाकर उसे रंगकर और विभिन्न आकारों में काटकर लोगों की मांग के अनुसार वस्तुएं तैयार करते हैं. हम अपने उत्पादों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही माध्यमों से बेचते हैं. इसके अलावा, हम गांव की लड़कियों को इस कला की ट्रेनिंग मुफ्त में देते हैं और उन्हें रोजगार के अवसर भी देते है. समुदाय पर प्रभाव और पुरस्कार राधा कुमारी की इस कड़ी मेहनत और समर्पण के फलस्वरूप, उनकी कला को राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है और उन्हें इसके लिए पुरस्कार भी मिला है. सिक्की कला के तहत तैयार की जाने वाली वस्तुओं में चित्रफलक, सजावटी डिब्बे, गहने जैसे चूड़ी, हार, और ईयर रिंग्स शामिल हैं. ये वस्तुएं न केवल स्थानीय बाजार में बिकती हैं बल्कि अन्य राज्यों और देशों में भी निर्यात की जाती हैं. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव सिक्की कला ने पाहि गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान किया है. इस कला के माध्यम से महिलाओं को स्थायी रोजगार मिला है और वे अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में सक्षम हुई हैं. साथ ही, इस कला की शिक्षा और प्रशिक्षण के द्वारा युवा पीढ़ी को भी रोजगार के अवसर मिल रहे हैं. यह कला न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से लाभकारी है बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए रखती है. सिक्की कला, खस घास की विशेषता को उजागर करते हुए एक पारंपरिक शिल्प को आधुनिक बाजार में स्थापित कर रही है. राधा कुमारी और उनके साथियों की मेहनत और समर्पण ने इस कला को नया जीवन प्रदान किया है और यह कला अब न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित हो रही है. इस प्रकार, सिक्की कला ने एक नई दिशा और पहचान बनाई है, जो गांव के विकास और महिलाओं की सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. Tags: Bihar News , Local18 , Madhubani news गोड्डा में भारी बारिश से ये सड़क बनी नदी, जान खतरे में डालकर लोग पार करने को मजबूर क्रिकेटर संग प्यार हुआ नाकाम, फिर 2 शादीशुदा एक्टर के इश्क में हुईं बदनाम, 49 की उम्र में भी सिंगल हैं एक्ट्रेस साल 2020 की इकलौती BLOCKBUSTER फिल्म, हीरो से ज्यादा खलनायक के हुए थे चर्चे, बॉक्स ऑफिस पर बजा था डंका बिहार के इस गांव में शुरू हुआ गोबर गैस प्लांट, महंगे सिलेंडर से मिलेगा छुटकारा 2 महीने में तैयार हो जाती है यह सब्जी, गिनते-गिनते थक जाएंगे कमाई, सेहत के लिए होती है लाभदायक बारिश ने बढ़ाई किसानों की चिंता, कपास के खेत में भर गया पानी, फलन कमजोर, जानें बचाव के उपाय बिहार का यह किसान बिचड़ा तैयार कर कमा रहा अच्छा मुनाफा, प्राकृतिक खाद का करते उपयोग 'जुआ कभी फलता नहीं', हनी ईरानी ने जब चुना ताश का पत्ता, जावेद अख्तर ने लकी बता कर ली शादी, अब तलाक पर कसा तंज सलमान खान संग काम कर हुईं मशहूर, करियर के पीक पर उठाया ऐसा कदम, 7 साल के अंदर खत्म हुआ एक्ट्रेस का बॉलीवुड करियर None

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