Shardiya Navratri 5nd Day, Maa Skandmata Vrat Katha In Hindi: नवरात्रि के पंचम दिन मां स्कंदमाता की पूजा- अर्चना करने का विधान है। साथ ही इन्हें अत्यंत दयालु माना जाता है। कहते हैं कि देवी दुर्गा का यह स्वरूप मातृत्व को परिभाषित करता है। वहीं प्रेम और ममता की मूर्ति स्कंदमाता की पूजा करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होता है और मां आपके बच्चों को दीर्घायु प्रदान करती हैं। वहीं देवी भागवत पुराण के अनुसार भोलेनाथ की अर्द्धांगिनी के रूप में मां ने स्वामी कार्तिकेय को जन्म दिया था। स्वामी कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद है, इसलिए मां दुर्गा के इस रूप को स्कंदमाता कहा गया है। आइए जानते हैं मां स्कंदमाता की व्रत कथा और आरती… प्राचीन कथा के अनुसार तारकासुर नाम एक राक्षस ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था। उस कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर उनके सामने आए। ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए तारकासुर ने अमर करने के लिए कहा। तब ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। निराश होकर उसने ब्रह्मा जी कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही उसकी मृत्यु हो। तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे। इसलिए उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। फिर उसने लोगों पर हिंसा करनी शुरू कर दी। तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और तारकासुर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। बड़े होने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। स्कंदमाता कार्तिकेय की माता हैं। जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवा नाम तुम्हारा आता।। सब के मन की जानन हारी। जग जननी सब की महतारी।। तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं। हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।। कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।। कही पहाड़ो पर हैं डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।। हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे।। भगति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।। इंद्र आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे।। दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं। तुम ही खंडा हाथ उठाएं।। दासो को सदा बचाने आई। ‘चमन’ की आस पुजाने आई।। या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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