मोमबत्ती केवल दिवाली पर ही नहीं बल्कि बर्थडे, एनिवर्सरी और रोमांटिक डिनर पर भी जलाई जाती हैं. मोमबत्ती पहले अंधेरे को दूर करने के लिए बनाई गई थीं क्योंकि तब बिजली नहीं होती थी. यह कभी घड़ी भी बनी लेकिन आजकल यह डेकोरेटिव आइटम के साथ थेरेपिस्ट भी बन गई हैं. बाजार में मोमबत्ती की कई वैरायटी आ रही हैं. जमाना हाईटेक हुआ तो फ्लेमलेस इलेक्ट्रिक कैंडल्स भी बिकने लगीं. कैंडल का मतलब है चमकना मोमबत्ती को अंग्रेजी में कैंडल कहते हैं. यह लैटिन शब्द candela से बना. इसका मतलब है चमकना. मोमबत्ती सबसे पहले किसने बनाई यह कहना मुश्किल है. लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि इसका आविष्कार 5300 साल पहले यानी कांस्य युग से पहले हो चुका था. कैंडल को जलाने के सबूत बेबिलोनियन सभ्यता में मिलते हैं. पहले मोमबत्ती पौधे की टहनियों से बनती थी जिसे एनिमल फैट में डुबोकर बनाया जाता था. मोमबत्ती के सबसे पहले इस्तेमाल के सबूत इटली में मौजूद एट्रस्केन मकबरे में मिलते हैं. रोम में बीवैक्स से मोमबत्तियां बनाई जाती थीं लेकिन वह बहुत महंगी थीं इसलिए अमीर लोग ही इसका इस्तेमाल करते थे. चीन में 5 हजार साल पहले मछली की चर्बी से कैंडल बनाने के सबूत मिलते हैं. आज जो कैंडल का मौजूदा रूप है उसे इंग्लैंड के जोसेफ मॉर्गन ने डिजाइन किया. उन्होंने गोल और लंबी कैंडल्स 1934 में बनानी शुरू की थीं. हर धर्म में मोमबत्ती का महत्व मोमबत्ती जहां धनतेरस और दिवाली पर जलाई जाती हैं, वहीं इसे गुरुद्वारों और हर गुरुवार को पीर की मजारों पर भी जलाया जाता है. हर संडे और क्रिसमस पर ईसाई समुदाय के लोग भी चर्च में कैंडल जलाते हैं. दरअसल मोमबत्ती अंधेरे को दूर करती है और प्रकाश फैलाती है. हर धर्म में अंधेरे को दूर करने की बात कही गई है. इसे गुड लक से भी जोड़ा जाता है. वहीं, जब भी कोई विरोध प्रदर्शन होता है और मार्च निकाला जाता है तो हाथ में कैंडल जलाई जाती है. इसे इंसाफ और भरोसे से भी जोड़ा गया है. अरोमा कैंडल्स दूर करें टेंशन कई स्पा सेंटर में अरोमा कैंडल्स जलती हैं. इसे कैंडल थेरेपी कहते हैं. कैंडल मेकर अमित कुमार कहते हैं कि अरोमा कैंडल्स से अच्छी खुशबू आती है. अगर इन्हें बेडरूम या घर में जलाया जाए तो मूड अच्छा रहता है और टेंशन दूर होती है. दरअसल इसकी फ्रेग्नेंस मेंटल हेल्थ को सुधारती है और इंसान को सुकून देती है. इनकी फ्रेग्नेंस दिमाग के लिम्फेटिक सिस्टम पर असर करती है. इसी हिस्से से इमोशन और मूड कंट्रोल होता है. जब अरोमा कैंडल्स जलती हैं तो बॉडी में हैप्पी हॉर्मोन्स रिलीज होने लगते हैं. इससे घर का माहौल खुशनुमा और बेडरूम में कपल्स के बीच रोमांटिक माहौल बन जाता है. अरोमा कैंडल्स की अलग-अलग फ्रेग्नेंस कई तरह से फायदा पहुंचाती है. ऑरेंज कैंडल जलाने से फोकस बढ़ता है और मूड खुश रहता है. पेपरमिंट कैंडल्स से याददाश्त दुरुस्त रहती है, रोजमेरी, लेमन और लैंवेंडर फ्रेग्नेंस की अरोमा कैंडल्स एंग्जाइटी दूर कर सुकून महसूस कराती है. जैस्मीन कैंडल्स इंसान को एनर्जी से भर देती है. कैंडल लाइट डिनर ही क्यों रोमांटिक? कुछ रिसर्च में रोमांटिक डिनर का मोमबत्ती से गहरा कनेक्शन बताया गया है. लगभग हर रेस्त्रां में माहौल को रोमांटिक बनाने के लिए रात को लाइट्स की जगह मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. वहीं कपल्स भी कैंडल लाइट डिनर ही पसंद करते हैं. अंग्रेजी में एक फ्रेज है ‘बेडरूम आईज’. इसका मतलब है कि जब किसी को कोई इंसान अट्रैक्टिव लगता है तो उसकी आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं. इससे दिमाग को सिग्नल जाता है कि वह रोमांटिक महसूस कर रहा है. इसी तरह से मोमबत्ती की हल्की रोशनी में भी आंख की पुतलियां फैल जाती हैं और इंसान रोमांटिक महसूस करता है. रोशनी जितनी हल्की होगी, लव हॉर्मोन्स का लेवल बढ़ेगा. एक साथ ना जलाएं ज्यादा कैंडल कई कैंडल्स एकसाथ जलाने से अस्थमा, एलर्जी और सांस से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे लोग परेशान हो सकते हैं. अगर किसी को सांस से जुड़ी बीमारी है तो उसके सामने मोमबत्ती ना जलाएं. मोमबत्तियों को हमेशा उस कमरे में जलाएं जहां वेंटिलेशन हो. मोमबत्ती का धागा जितना पतला होगा वह उतना कम प्रदूषण करेगा. इसे 1 घंटे से ज्यादा ना जलाएं. बाजार में बिक रहीं पैराफिन वैक्स की मोमबत्तियां पटाखे से 10 गुना प्रदूषण फैलाती हैं इसलिए बी-वैक्स और सोया वैक्स से बनी मोमबत्तियां ठीक हैं. पैराफिन वैक्स की कैंडल्स को जलाने से एक्रोलिन, टॉल्यूइन और बेंजीन नाम के खतरनाक केमिकल निकलते हैं. आजकल बाजार में लकड़ी के बुरादे और नारियल के खोल में बनी ऑर्गेनिक कैंडल्स भी आ रही हैं जो सेहत और पर्यावरण दोनों को नुकसान नहीं पहुंचातीं. बिना लौ की मोमबत्ती आजकल जमाना हाईटेक हो गया है और लोग इकोफ्रेंडली भी हुए हैं. ऐसे में अब फ्लेमलेस कैंडल्स खूब पॉपुलर हो रही हैं. यह दीये, लंबी वाइट पिलर कैंडल या टी-लाइट कैंडल की शेप में आ रही हैं. यह इलेक्ट्रिक या बैटरी से जलती हैं. इसमें लौ नहीं होती लेकिन जब यह जलती हैं तो नैचुरल मोमबत्तियों की तरह ही नजर आती हैं. आजकल सोलर लाइट भी खूब बिकने लगी है. इसे लोग गार्डन और बालकनी में ज्यादा सजाते हैं. मोमबत्ती से समय का पता चलता मोमबत्ती कभी घड़ी बनकर लोगों को समय भी बताती थी. चीन का शाही सांग राजवंश इससे समय का अंदाजा लगाता था. उनका शासन 960 से 1279 तक चला. उस जमाने में मोमबत्ती जब पिघलती थी जो वजन का एक बाट गिर जाता था जिससे पता चलता था कि 1 घंटा बीत गया है. ऐसा होते ही तेज आवाज आती थीं क्योंकि मोमबत्ती मेटल पर रखी होती थी. इसे मेटल क्लॉक कहते थे. 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