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Blog: विकसित देशों ने तकनीकी और नवाचार को बनाया विकास का मुख्य आधार, वैज्ञानिक सोच को दी प्राथमिकता

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) में प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बताया गया है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और ज्ञान की भावना को प्रोत्साहित करे। भारत की एकता की रक्षा में योगदान दे। यह केवल संवैधानिक दायित्व नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास की दिशा में हमें आगे बढ़ाने का माध्यम है। एक-एक नागरिक मिल कर प्रयास करेंगे और अपने दायित्व को समझेंगे, तभी राष्ट्र का विकास होगा। जैसे-जैसे भारत ‘विकसित’ बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तर्कसंगत विचार और विज्ञान-आधारित नीतियों की आवश्यकता अधिक प्रासंगिक हो गई है। ऐसे समाज में, जहां धर्म और परंपराएं गहरी जड़ें जमाए हुए हैं, वहां वैज्ञानिक सोच का प्रसार और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। भारतीय समाज पर धर्म और परंपरागत मान्यताओं का गहरा प्रभाव है, जिससे विज्ञान और तर्क पर आधारित सोच को अपनाने में कठिनाइयां आती हैं। मगर नागरिक सकारात्मक होकर पहल करें, तो यह कार्य आसान हो सकता है। अनुच्छेद 51ए (एच) इसी संदर्भ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने और कार्य करने के महत्त्व को बल देता है। इसके बिना, समाज में निर्णय-निर्माण प्रक्रिया अक्सर भावनाओं और मान्यताओं पर आधारित होती है, जिससे दीर्घकालिक विकास और समृद्धि में बाधा उत्पन्न होती है। जलवायु संकट, ऊर्जा संकट और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों जैसे मुद्दों के समाधान के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी नवाचारों की आवश्यकता है। विकसित देशों जैसे जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और अमेरिका ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तकनीकी विकास और नवाचार को अपने राष्ट्र निर्माण का मुख्य आधार बनाया है। इन देशों ने न केवल अपनी शिक्षा प्रणाली में वैज्ञानिक सोच को प्राथमिकता दी, बल्कि इसे नीति निर्माण, उद्योगों और समाज के हर स्तर पर लागू किया। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने प्राकृतिक संसाधनों की कमी के बावजूद वैज्ञानिक नवाचार और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया और आज वे विश्व की अग्रणी आर्थिक और तकनीकी शक्तियों में गिने जाते हैं। इसी तरह, अमेरिका और जर्मनी ने चिकित्सा, अंतरिक्ष और डिजिटल प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जो उनके अनुसंधान संस्थानों और विज्ञान में निवेश का परिणाम हैं। इन देशों का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी नवाचारों को अपना कर एक राष्ट्र दीर्घकालिक समृद्धि और आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है। भारत को भी इनसे प्रेरणा लेते हुए अपनी शिक्षा प्रणाली और ग्रामीण क्षेत्रों में विज्ञान के प्रसार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत मान्यताओं और अंधविश्वासों का प्रभाव अभी भी गहरा है। 22 करोड़ से ज्यादा बच्चे शिक्षा से वंचित, दुनिया में केवल 24 फीसदी शरणार्थियों को मिलता है अवसर विकसित भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए, शिक्षा प्रणाली में बदलाव बेहद जरूरी है, ताकि यह छात्रों में तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सके। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अधिकतर जोर तथ्यों को रटने पर है, न कि समस्याओं का विश्लेषण करने और उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हल करने पर। शिक्षा का उद्देश्य केवल शैक्षिक उपलब्धियों तक सीमित न रह कर छात्रों को जीवन में व्यावहारिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रेरित करना होना चाहिए। पाठ्यक्रम में ऐसे सुधारों की आवश्यकता है, जो विद्यार्थियों को वैज्ञानिक पद्धति और तर्कसंगत सोच का महत्त्व सिखाए, ताकि वे भविष्य में एक जागरूक और प्रगतिशील समाज के निर्माण में योगदान दे सकें। मीडिया भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आजकल लोग जानकारी के लिए मुख्यत: टीवी, समाचारपत्र और सोशल मीडिया पर निर्भर करते हैं। इस माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना, जनता तक सही जानकारी पहुंचाना और भ्रांतियों का खंडन करना आवश्यक है। भारतीय मीडिया में अभी गैर-जरूरी और सनसनीखेज समाचारों को प्रमुखता मिल रही है, जो वैज्ञानिक सोच के प्रसार में बाधा पैदा करती है। इसके विपरीत, मीडिया को विज्ञान और तकनीकी उपलब्धियों के प्रसार का माध्यम बनाना चाहिए। वृत्तचित्र, विज्ञान-आधारित चर्चा और शोध-आधारित कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रेरित करें और लोगों को तर्कसंगत और वैज्ञानिक सोच की दिशा में बढ़ावा दें। स्वरोजगार की राह में ढेरों मुश्किलें, रोजगार सृजन में भारत का महत्त्वपूर्ण स्थान नीति-निर्माण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समावेश आवश्यक है। नीति निर्धारण में जब तक विज्ञान को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक समाज में वैज्ञानिक चेतना का समुचित विकास संभव नहीं होगा। जलवायु संकट और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए भी वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित नीतियां ही प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु संकट के समाधान में विज्ञान और तकनीकी नवाचार को अपना कर दीर्घकालिक योजनाएं बनाई जा सकती हैं। इसी प्रकार, कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी नवाचारों का समावेश खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का नीति निर्माण में समावेश न केवल समस्याओं का प्रभावी समाधान प्रस्तुत करता, बल्कि यह समाज में वैज्ञानिक चेतना को भी बढ़ावा देता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इन क्षेत्रों में परंपरागत मान्यताओं और अंधविश्वासों का अधिक प्रभाव है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार के लिए इन क्षेत्रों में विशेष प्रयासों की जरूरत है। इसके लिए सरकार और सामाजिक संगठनों को ग्राम-स्तर पर विज्ञान आधारित जागरूकता कार्यक्रम और कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए, ताकि ग्रामीण जनता तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्त्व समझ सके। इससे न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विस्तार होगा, बल्कि यह ग्रामीण समाज में व्याप्त अंधविश्वास और मिथकों के उन्मूलन में भी सहायक होगा। डिजिटल युग में मिथ्या सूचनाओं का प्रसार एक प्रमुख चुनौती है। कोविड-19 महामारी के दौरान, टीकाकरण से जुड़ी भ्रांतियों ने समाज में भय और भ्रम उत्पन्न किया। इस संदर्भ में, सोशल मीडिया मंचों को सही और तथ्यात्मक जानकारी को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार हो और समाज मिथकों और भ्रांतियों से बच सके। इसके अलावा, विज्ञान और नैतिकता का समन्वय भी आवश्यक है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण को केवल तकनीकी प्रगति तक सीमित न रखते हुए इसे नैतिकता के साथ जोड़ा जाना चाहिए, ताकि विज्ञान का उपयोग समाज कल्याण के लिए हो। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जलवायु परिवर्तन और चिकित्सा में जीन संपादन जैसे क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ नैतिक दृष्टिकोण भी अपनाना आवश्यक है, ताकि विज्ञान का प्रयोग केवल लाभकारी और समाज के लिए उपयोगी हो। AI से लड़के को हुआ प्यार, चैटबाट पर करता था खूब बात, मशीन से भावनात्मक जुड़ाव होने पर कर ली आत्महत्या विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निवेश न केवल वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हमें आगे ले जाएगा, बल्कि यह हमारे देश की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान में भी सहायक होगा। उदाहरण के लिए, कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान से उत्पादकता में सुधार लाया जा सकता है और स्वास्थ्य क्षेत्र में विज्ञान के प्रयोग से बीमारियों का सटीक और समय पर उपचार संभव हो सकता है। इसी प्रकार, उद्योगों में तकनीकी नवाचारों का समावेश कार्यकुशलता और उत्पादकता को बढ़ावा देने में सहायक है। शिक्षा, नीति निर्माण और मीडिया में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार भारत को तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से एक प्रगतिशील राष्ट्र बना सकता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इन क्षेत्रों में परंपरागत मान्यताओं और अंधविश्वासों का अधिक प्रभाव है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार के लिए इन क्षेत्रों में विशेष प्रयास की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार और सामाजिक संगठनों को ग्राम-स्तर पर विज्ञान आधारित जागरूकता कार्यक्रम और कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए, ताकि ग्रामीण जनता तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्त्व समझ सके। इससे न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विस्तार होगा, बल्कि यह ग्रामीण समाज में व्याप्त अंधविश्वास और मिथकों के उन्मूलन में भी सहायक होगा। None

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