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Rupee at All-time Low: रुपये में रिकॉर्ड गिरावट का किस पर क्या होगा असर, निवेशक कैसे बनाएं सही रणनीति?

Follow Us Rupee at All-time Low: डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. (Image : Pixabay) Explained : Impact of Fall in Rupee Dollar Exchange Rate: भारतीय रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. एक डॉलर की कीमत 85 रुपये के पार हो गई है. गुरुवार 19 दिसंबर को भारतीय करेंसी का भाव 85.04 रुपये प्रति डॉलर पर खुला, जो पिछले दिन के 84.96 रुपये के स्तर से भी नीचे है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व के संकेतों ने इस गिरावट को और तेज कर दिया है. फेडरल रिजर्व ने अपनी ब्याज दरों में कटौती की रफ्तार धीमी करने का संकेत दिया है, जिससे डॉलर में मजबूती आई है. रुपये में रिकॉर्ड गिरावट की यह एक बड़ी वजह है. ऐसे में निवेशकों के सामने बड़ा सवाल ये है कि मौजूदा माहौल में उन्हें अपनी निवेश की रणनीति में क्या एडजस्टमेंट करने चाहिए. इस सवाल पर आगे बात करेंगे, लेकिन पहले समझ लेते हैं कि रुपये में ताजा गिरावट की वजह क्या है और इसका क्या असर हो सकता है. यूएस फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) ने बुधवार को अपनी बेंचमार्क ब्याज दर को 0.25% घटाकर 4.25%-4.5% की टारगेट रेंज में लाने का एलान किया. इसके साथ, ही उसने 2025 में सिर्फ दो बार और रेट घटाने की संभावना भी जाहिर की है. इस घोषणा के बाद डॉलर इंडेक्स 108.086 पर पहुंच गया, जो पिछले दो साल का सबसे ऊंचा स्तर है. रुपये पर दबाव डालने वाले अन्य कारणों में घरेलू इक्विटी बाजारों से पूंजी का बाहर जाना, यूएस फेड की एग्रेसिव पॉलिसी और एशियाई करेंसी, खास तौर पर चीनी युआन की कमजोरी शामिल हैं. Also read : Best Multi Cap Funds in 2024: मल्टी कैप के लिए शानदार रहा यह साल, टॉप 9 फंड्स ने दिया 30% से 38% तक रिटर्न, टॉपर बनी ये स्कीम रुपये की लगातार गिरावट रिज़र्व बैंक (RBI) के लिए चिंता की वजह हो सकती है. रुपये को और ज्यादा गिरने से रोकने के लिए RBI को पिछले कुछ महीनों के दौरान करेंसी मार्केट में बार-बार दखल देना पड़ा है, जिसकी वजह से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गिरावट आई है. 4 अक्टूबर से 6 दिसंबर 2024 के बीच, आरबीआई का विदेशी मुद्रा भंडार 704.885 अरब डॉलर से घटकर 654.857 अरब डॉलर रह गया. लिहाजा, आने वाले समय में RBI को विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने की फिक्र भी करनी होगी, खासकर उन हालात में जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. Also read : Best SIP Return : HDFC MF की इस स्कीम के 10 साल रहे बेमिसाल ! 10 हजार की एसआईपी से बने 42 लाख, लंपसम पर 566% रिटर्न रुपये में गिरावट का सीधा असर इंपोर्ट की जाने वाली चीजों की लागत पर पड़ता है. इसमें सीधे इंपोर्ट किए जाने वाले प्रोडक्ट्स के अलावा किसी प्रोडक्ट के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल या पार्ट्स भी शामिल हैं. मिसाल के तौर पर $100 कीमत वाले किसी प्रोडक्ट को इंपोर्ट करने के लिए अगर एक साल पहले 8300 रुपये देने पड़ते, तो अब 8,500 रुपये चुकाने पड़ेंगे. इसका असर आपके बजट से लेकर निवेश तक, हर पहलू पर महसूस किया जा सकता है. Also read : ITC Hotels Demerger: आईटीसी होटल्स के डी-मर्जर से जुड़ा बड़ा एलान, 6 जनवरी होगी रिकॉर्ड डेट, 1 जनवरी से लागू होगा फैसला डॉलर महंगा होने का सीधा असर बाहर से इंपोर्ट होने वाले कच्चे तेल पर भी पड़ता है. अगर इस वजह से तेल की कीमतों में इजाफा करना पड़े, तो ट्रांसपोर्ट की लागत बढ़ती है, जिससे तमाम जरूरी चीजों के दाम बढ़ने का खतरा रहता है. यानी रुपये में यह गिरावट आगे चलकर आपके घरेलू बजट को भी बिगाड़ सकती है. Also read : Gold Rate Today: सोने में 200 रुपये की गिरावट, 3 दिन तक घटने के बाद 500 रुपये बढ़ी चांदी, आगे कैसा रहेगा रुझान? अगर आप विदेश में पढ़ाई या घूमने की योजना बना रहे हैं, तो डॉलर महंगा होने की वजह से आपके खर्चे भी बढ़ेंगे. रुपये की कमजोरी का मतलब है कि आपको उसी सर्विस या सामान के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ेंगे. जो बिजनेस इंपोर्ट पर निर्भर हैं, उनके लिए लागतें बढ़ने से प्रॉफिटेबिलिटी पर दबाव बढ़ सकता है. लेकिन एक्सपोर्टर्स के लिए यह स्थिति फायदेमंद भी साबित हो सकती है. आईटी, फार्मा, और जेम्स एंड जूलरी जैसे सेक्टर्स के लिए रुपये की कमजोरी बिजनेस में फायदा उठाने का नया मौका दे सकती है. Also read : Trump Warns India : भारत के लिए क्या है ट्रंप की चेतावनी का मतलब? अमेरिका के अगले राष्ट्रपति ने क्यों कहा, बराबरी से देंगे हर टैक्स का जवाब घरेलू शेयर बाजार पर इसका निगेटिव असर दिख सकता है, क्योंकि निवेशक रुपया आधारित इनवेस्टमेंट को निकालकर डॉलर बेस्ड इनवेस्टमेंट की तरफ रुख कर सकते हैं. हालांकि, अमेरिकी शेयरों में निवेश करने वालों को डॉलर की मजबूती से फायदा हो सकता है. Also read : Best Mutual Funds: मिड कैप के नाम रहा 2024 का साल, टॉप 7 फंड्स ने 1 साल में कराई 64% तक कमाई, स्मॉल कैप को पीछे छोड़ा रुपये में कमजोरी के बुरे असर से बचने के लिए निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करना चाहिए. इसके लिए निवेश की रणनीति को बदलते हुए आईटी और फार्मा जैसे एक्सपोर्ट ओरिएंटेड सेक्टर्स में निवेश बढ़ाने पर ध्यान दे सकते हैं. साथ ही उन बड़ी कंपनियों में निवेश करना चाहिए जो एक्सचेंज रेट में उथल-पुथल का सामना बेहतर ढंग से करने की क्षमता रखती हैं. कुल मिलाकर, रुपये की गिरावट का सिलसिला नए आर्थिक अवसर और चुनौतियां दोनों ला सकता है. यह जरूरी है कि निवेशक घबराए बिना लॉन्ग टर्म नजरिया अपनाएं और अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग को नए आर्थिक माहौल के हिसाब से एडजस्ट करके चलें. None

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