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दुनिया मेरे आगे: अज्ञातवास पर जाना चाहता है मन, भटकाव से बचने के लिए करना पड़ता है उपाय

कभी-कभी मन अज्ञातवास पर जाना चाहता है। संसार और यहां तक कि अपने भीतर के भी कोलाहल से दूर, एक ऐसे एकांत में, जहां कोई भी न हो जो उसकी शांति में बाधा पहुंचा सके। मगर मन स्वयं से ही मुक्त नहीं हो पाता। इसका कारण है कि अगर उद्वेलित मन पलायन के विचार से एकांत की तलाश करता है तो उसका असफल होना निश्चित है। शांत मन के साथ ही अज्ञातवास के एकांत का आनंद लिया जा सकता है, लेकिन जब मन शांत होता है, तब उसे किसी प्रकार के अज्ञातवास की आवश्यकता ही कहां रह जाती है। शांत मन का व्यक्ति भीड़ में भी शांति का अनुभव प्राप्त कर लेता है, क्योंकि वह सीख चुका होता है कि स्वयं के साथ किस तरह जिया जाता है, किस प्रकार एक-एक पल का, घटनाओं का आनंद लिया जा सकता है। लेकिन मन जब विचलित होगा तो वह एक स्थान पर ठहर नहीं पाता। बार-बार भटकता रहता है। वास्तव में यह भटकाव ही इस कामना को बल देता है कि सबसे दूर कहीं चले जाएं, जहां अन्य कोई न हो। मन का भटकाव क्लांत कर देता है, थका देता है व्यक्ति को और शरीर पर भारी होती मन की शिथिलता व्यक्ति के आसपास के वातावरण को बोझिल कर देती है। इस बोझिलता का भार व्यक्ति अपनी सहनशक्ति की सीमा में सहन करता है, लेकिन उसके बाद उसकी वाणी, बर्ताव, क्रियाकलापों पर भी जब इसका प्रभाव पड़ने लगता है. तब उसके हृदय में सबसे दूर जाने की इच्छा जन्म लेने लगती है। व्यक्ति प्रयत्न करने लगता है स्वयं को सबसे दूर रखने का, जहां बाह्यजगत का कोलाहल न हो। वह विचार कर सके अपनी परिस्थितियों पर, मनन कर सके और कुछ भी न कर सके तो विचार शून्य होकर रह सके। ये सभी विचार स्वयं के साथ समय बिताने की इच्छा से आते हैं। मगर व्यक्ति स्वयं के साथ भी तब समय कहां बिता पाता है! विकलता के भाव रह-रहकर उसके एकांत को खंडित कर देते हैं। खंडित एकांत किस प्रकार साध को पूर्ण कर सकता है! किस तरह शांति प्रदान कर मन को प्रसन्नता दे सकता है! सही रास्ते पर आगे बढ़ने में नहीं है कोई बुराई, जिंदगी जीने के अंदाज सिखाने वाले कम नहीं तब फिर ऐसे में इस अज्ञातवास का अर्थ ही क्या रह जाता है? पलायन लोगों से किया जा सकता है, लेकिन स्वयं से तो नहीं कर सकते! फिर ऐसे में क्या किया जाए? क्या मन को यों ही भटकने और अशांत रहने के लिए छोड़ दिया जाए? मगर परिस्थितियों के आगे बेबस होकर रहना भी तो मन को गवारा नहीं होता! ऐसे में मन को शांत करने से पहले उसके अशांत होने के कारणों पर ध्यान देना अधिक आवश्यक होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे डाक्टर पहले बीमारी ढूंढ़ते हैं, उसके बाद बीमारी के अनुरूप उसकी दवाई देते हैं। अगर मन के अशांत होने के कारणों को जाने बिना ही हम बार-बार मन पर संयम रखने का प्रयास करेंगे तो वह निष्फल ही होगा। किसी भी बात को अत्याधिक सोचना भी मन की विकलता की वजह बन जाता है। जीवन विभिन्न घटनाओं का चक्र है, जिनमें कुछ घटनाएं प्रसन्नता का कारक बनती हैं तो कुछ दुख, क्रोध और क्षोभ की वजह। एक बात को मन में रखकर उसे मथते रहने से मन भी थक जाता है। इस मंथन के कारण एक के बाद एक भाव मन में जन्म लेते जाते हैं। मनुष्य का स्वभाव विचित्र है। वह प्रसन्नता के कारकों पर मंथन नहीं करता। वह उन बातों को ज्यादा सोचता है, जिनके कारण उसे दुख प्राप्त हुआ और इस तरह के कारण मन में मलिनता लाते हैं। मलिन मन शांति कैसे प्राप्त करेगा? सभी उपाय ऐसे में व्यर्थ ही हो जाएंगे, क्योंकि कारण मन के अंदर ही है। मनुष्य की प्राथमिकता अपने मन को स्थिर रखना होनी चाहिए, अन्यथा वह संसार में अपनी उपादेयता सिद्ध नहीं कर पाएगा। मन हमेशा साथ चलता है, लेकिन मन को अपना स्वामी नहीं बनने देना चाहिए। यह बात ऋषियों-मुनियों द्वारा प्राचीन काल से कही जाती रही है। उसका कारण यही है कि मन के वश में रहने वाला व्यक्ति न अपना भला कर पाता है और न ही उससे उसके कर्तव्यों के पालन की आशा की जा सकती है। प्रत्येक मनुष्य में अनेक संभावनाएं हैं, समाज के विकास के साथ ही वह सृष्टि में अपना सार्थक योगदान दे सकता है। तनावपूर्ण जिंदगी जीने के आदी होते जा रहे लोग, चिंता की गुत्थियां को समझना टेढ़ी खीर मन को शांत करने के लिए सर्वप्रथम स्वीकार करना सीखना होगा। यानी जो भी हो रहा है, उससे भागना नहीं चाहिए। उसके विषय में अधिक नहीं सोचना चाहिए। वर्तमान में जीने की आदत डालना चाहिए। स्वीकारने के बाद मन के लिए शांत होना अधिक सरल हो जाता है। जिन बातों पर परिस्थितियों को मनुष्य बदल ही नहीं सकता, उसे काबू में करने की कोशिश भी मन को दुखी करती है। इसलिए ऐसी स्थितियों को, ऐसे लोगों को जो हमें दुखी करते हैं या नकारात्मकता भरते हैं, उन सभी को त्याग देना चाहिए। मन में दृढ़ निश्चय कर लिया जाए कि अब हम इन सभी से दूर रहेंगे। किसी भी प्रकार से उनका प्रभाव खुद पर नहीं पड़ने देंगे। ऐसा करके हम अपने विकल मन की अधिक सहायता कर सकते हैं। मेडिटेशन यानी ध्यान केंद्रित करने की योग साधना भी मन की सेहत के लिए औषधि का कार्य करती है। साथ ही खुद का सम्मान करना और उसे बनाए रखना मन के आहार के लिए आवश्यक है। इसके बाद किसी अज्ञातवास पर जाने की इच्छा समाप्त हो जाएगी, क्योंकि जिस शांति की खोज मन को है, वह स्वयं में ही प्राप्त होने लगेगी। None

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