आज की दुनिया एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। डिजिटल तकनीक के व्यापक प्रसार ने हमारी दिनचर्या और सोचने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। इंटरनेट, कृत्रिम बुद्धिमता और सोशल मीडिया ने न केवल हमें एक नए युग में प्रवेश कराया है, बल्कि हमारी इंसानियत पर भी सवाल खड़े किए हैं। आज जब अपने चारों ओर की दुनिया को देखा जाए तो कोई भी संवेदनशील व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो सकता है कि क्या यह तकनीकी क्रांति हमें वास्तव में जोड़ कर रख रही है या हमें और भी अलग-थलग कर रही है! एक श्लोक है- ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।’ यानी हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। यह श्लोक इस बात की याद दिलाता है कि सच्चा मार्ग वही है, जो अंधकार और असत्य से मुक्त हो। इसी तरह, आज हमें तकनीक के उजाले में खोते हुए उन मूल्यों को याद रखना होगा, जो हमें मानवता की ओर ले जाते हैं। तकनीक ने भले ही हमें वैश्विक स्तर पर जुड़ने का अवसर दिया हो, लेकिन वास्तविकता में हमने अपनी आसपास की दुनिया से दूरी बना ली है। आभासी दुनिया में जुड़ने के सुख की हकीकत यह है कि सोशल मीडिया पर हजारों लोग दोस्ती की सूची में हो सकते हैं, उन्हें हमारा लिखा हुआ या कोई और सामग्री पसंद आती है, मगर वास्तव में कोई हमसे जुड़ा नहीं होता। हमारा पड़ोसी तक हमारे दुख में शामिल नहीं होना चाहता। ज्यादातर लोग एक ही घर में रह कर अपने स्मार्टफोन में डूबे रहते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि इस डिजिटल दुनिया में हम और भी अकेले होते जा रहे हैं। उन दिनों को याद किया जा सकता है, जब परिवार और दोस्तों के साथ बैठकर हम वास्तविक बातचीत किया करते थे। आज वह आपसी संवाद एक ‘कमेंट’ या ‘इमोजी’ तक सीमित हो गया है। मानव जीवन में ज्ञानेंद्रियों की यात्रा, भाषाओं से ही समूचे ज्ञान का हुआ उदय खुद में सिमटने के उदाहरण अपने आसपास हर जगह देखे जा सकते हैं। किसी व्यावसायिक माल में जमा लोगों को देख कर उनके भी संवेदनशील होने के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ समय पहले एक बुजुर्ग एक जगह असहाय बैठे थे। शायद उन्हें मदद की जरूरत थी। चारों ओर से लोग गुजर रहे थे, लेकिन किसी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि सभी अपने-अपने स्मार्टफोन या बाजार से खरीदारी में व्यस्त थे। एक व्यक्ति ने जब उनसे बात की, तब पता चला कि उन्हें अपने बेटे से संपर्क करने में परेशानी हो रही थी। उस व्यक्ति ने उनकी मदद की, तब उनकी आंखों में राहत और आभार का भाव उभरे। तकनीक ने हमें भले ही एक नई दुनिया दी हो, लेकिन हम अपनी इंसानियत और आपसी जुड़ाव से कहीं दूर हो गए हैं। यह विडंबना है कि जब हमारे पास इतनी तकनीकी प्रगति है, तो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी उसी तेजी से क्यों बढ़ रही हैं। तनाव, अवसाद और अकेलापन जैसे मुद्दे अब आम हो गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल युग में इन समस्याओं की वृद्धि इस बात का संकेत है कि हम अपने वास्तविक मानवीय रिश्तों से दूर होते जा रहे हैं। अब वह समय नहीं रहा जब हम अपनों के साथ समय बिताने से आत्मिक शांति पाते थे। एक दौर था जब इंसानियत, प्यार और देखभाल हमारे रिश्तों की नींव हुआ करती थी। अब यह सब डिजिटल संकेत और स्क्रीन पर उभरते ‘नोटिफिकेशन’ या सूचनाओं और संदेशों में बंधकर रह गया है। दौलत और दिखावे की दौड़ में हाशिये पर संवेदनशीलता, क्या हम असल में रह गए हैं इंसान ‘विज्ञान ने संसार को एक बहुत बड़ी चीज दी है- तथ्यों को पहचानने की शक्ति। लेकिन प्रेम ही वह तत्त्व है, जो मानव-हृदय को सही दिशा देता है।’ प्रेमचंद की ये पंक्तियां हमें इस बात का अहसास कराती हैं कि तकनीक और विज्ञान कितनी भी उन्नति कर लें, आखिरकार मानवीय संवेदनाएं ही हमें एक दूसरे से जोड़ती हैं और जीवन को सार्थक बनाती हैं। इस बात को लेकर चिंतित होना चाहिए कि क्या हम वाकई सही दिशा में जा रहे हैं। हालत यह हो गई है कि कोई हादसा हो जाता है, कोई अपराध हो रहा होता है, उस समय भी कुछ लोग मदद पहुंचाने या उसके लिए दौड़ पड़ने के बजाय अपने स्मार्टफोन निकाल कर झट से वीडियो बनाना शुरू कर देते हैं। सवाल है कि क्या तकनीक हमारी संवेदनाओं और सोचने-समझने की दिशा को भी प्रभावित कर रही है। तकनीकी प्रगति ने जीवन को सरल बना दिया है, लेकिन इसने हमारे दिलों को जटिल भी कर दिया है। क्या हम उस बिंदु पर पहुंच चुके हैं, जहां इंसानियत और मानवीय संवेदनाओं को तकनीक से परे एक नया आयाम देना होगा? इस प्रश्न का उत्तर हम सभी को मिलकर खोजना होगा। तकनीक का सही उपयोग तभी संभव है, जब यह हमारे मानवीय मूल्यों को संजोए रखे। तकनीकी के उपयोग का उद्देश्य हमारी जिंदगी को आसान बनाना था, लेकिन कहीं न कहीं यह हमें आपस में जोड़ने के बजाय भावनात्मक रूप से दूर कर रही है। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि तकनीक का प्रयोग इंसानियत को मजबूत करने के लिए हो, न कि इसे कमजोर करने के लिए। None
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