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दुनिया मेरे आगे: सही रास्ते पर आगे बढ़ने में नहीं है कोई बुराई, जिंदगी जीने के अंदाज सिखाने वाले कम नहीं

जिंदगी के रास्तों पर अनेक जगह चाहे-अनचाहे मोड़ आ जाते हैं, जिनका हमें पता नहीं चलता। किसी भी रास्ते पर सही जगह मुड़ने का खास महत्त्व है। वाहन चलाते हुए भी कई बार ऐसा हो जाता है कि हम रास्ता भूल जाते हैं, सड़क पर आगे निकल जाते हैं और एकदम से बाएं या दाएं नहीं मुड़ सकते। हमें कुछ आगे जाकर वापस मुड़ने के लिए बनाई गई जगह या ‘यूटर्न’ से पीछे आना पड़ता है और सही रास्ता लेना होता है। खासकर लंबी दूरी की सड़कों पर कहीं भी मुड़ जाने की सुविधा हर कहीं नहीं होती। इस क्रम में कई बार काफी दूरी का सफर तय करना पड़ता है। अपनी मर्जी से कहीं भी मुड़ जाने पर तेज रफ्तार सड़कों पर जोखिम से गुजरना या फिर जुर्माना देना पड़ सकता है। जिंदगी एक दिलचस्प, अप्रत्याशित घटनाओं और संभावनाओं से भरा सफर है। इसे सुरक्षित तरीके से तय करते रहने वाले भी अनेक बार गलती से आगे, इधर या उधर चले जाने के कारण थोड़ा पीछे आते हैं और फिर सही रास्ता अपना लेते हैं, ताकि आगे बढ़ते रहें। यों भी, सही रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए अगर थोड़ी दूरी भी तय करनी पड़े, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। बल्कि यह अपने हित में होता है। इस सफर में उचित स्थिति अपने मन की बात कहकर यह आकलन कर लेने की है कि आपके शब्द सामने वाले को बुरे तो नहीं लगे या कितने बुरे लगे। अगर माफी मांगना जरूरी है, तो वक्त की जरूरत के मुताबिक माफी मांग भी लेनी चाहिए। खुले दिल से माफी मांग ली जाए तो संबंधों का पुल सलामत रहता है। जमाने से सुनते आए हैं कि तलवार का घाव भर जाता है, लेकिन जबान से निकले शब्दों से बना जख्म कभी नहीं भरता। हालांकि वक्त के साथ यह बात अपनी प्रवृत्ति बदल रही है। शब्द उन फलों की तरह हैं कि पहले भेंट कर दें, पता चले कि सामने वाले ने चख लिए, लेकिन स्वाद नहीं लगे तो फल वापस ले लिए जाएं। शब्दों में अब वह पुरानी बात नहीं रही। जिंदगी बाजार की गिरफ्त में है। कहे गए शब्द वापस लिए जा सकते हैं और उम्मीद करनी चाहिए कि इस तरह से सामने वाले को भी बेहतर लगने लगेगा। मानव जीवन में ज्ञानेंद्रियों की यात्रा, भाषाओं से ही समूचे ज्ञान का हुआ उदय जिंदगी जीने के अंदाज सिखाने वाले कम नहीं हैं। राजनीति भी अब जिंदगी की प्रशिक्षक हो गई है। यह सिखाती है कि बात कैसे करते हैं। अवसर और परिस्थिति के अनुसार कौन-से स्वादिष्ट या बेस्वाद शब्द दूसरों को परोसने चाहिए। यह अभिनेताओं को अभिनय सिखा रही है। उन्हें समझाती है कि राजनीति में सिर्फ अभिनय नहीं करते, बल्कि बहुत समझदारी भरी कुटिलता से अभिनय करते हैं। काबिल अभिनेता भी अगर वांछित अभिनय न कर पाए, तो छोटा-सा संवाद वापस लेने के लिए मोड़ ढूंढ़ना पड़ता है। इससे मानसिक रूप से परेशानी होती है, भूख उड़ जाती है और आत्मा तड़पती है, फिर भी स्थिति ठीक होने का अभिनय लगातार करते रहना होता है। सही मोड़ काटना सीखते रहना होता है। दिग्गज व्यक्ति अनुभव के वस्त्र बदल-बदल कर, अभिनय करते-करते निर्देशक हो जाते हैं, लेकिन उन्हें भी नए मोड़ चुनने पड़ते हैं। शतरंज की बिसात पर नए मोहरे चलाना सीखना पड़ता है। कई मोड़ ऐसे भी आते हैं, जहां सार्वजनिक खेद प्रकट करना होता है। देखा जाए तो अपनी गलती पर अगर सचमुच अफसोस नहीं है, तो खेद प्रकट करना भी कई बार सही अवसर पर किया गया कुशल अभिनय होता है। जिंदगी में हर तरह का किरदार निभाना होता है जो उसी तरह के अभिनय की मांग करता है। यहां करतब भी जरूरी होते हैं। स्थिति के अनुसार एक दूसरे को स्थिर या अस्थिर करने के लिए विश्वसनीय करतब करवाए जाते हैं और कई बार तो असली मारधाड़ भी जरूरी हो जाती है, जो करनी ही पड़ती है। यह जिंदगी का खतरनाक मोड़ होता है, जिस पर आमतौर पर सभी ठहरना नहीं चाहते। ऐसी जगह रुकना एक तरह की मजबूरी होती है। पीड़ित व्यक्ति अगर शांत रहे तो बेहतर, नहीं तो फिर अनुभवी मोड़ चुनना होता है। तकनीक ने बढ़ा दी बीमारियां, इंसानियत धीरे-धीरे हो रहा खत्म यह मोड़ होता है ‘माफी मोड़’, जहां अपनी गलती का अहसास करते हुए या फिर स्थिति को सामान्य करने के मकसद से माफी मांग ली जाती है। यह तारीफ के काबिल मोड़ होता है। सभी समझदार लोग इसकी तारीफ ही करते हैं। देखा जाए तो इससे दोनों काम हो जाते हैं। गुस्सा भी जाहिर कर दिया और माफी मांगकर स्थिति भी नियंत्रण में कर ली। माफी मांगते हुए अगर यह कह दिया जाए कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था या मेरे कहने का वह मतलब नहीं था तो भी तारीफ मिल सकती है। निजी जिंदगी में आराम से काटे गए मोड़ काफी राहत पहुंचाते हैं। अगर पत्नी और पति एक दूसरे को ऐसा कहते रहें तो अच्छा संवेदनशील व्यवहार माना जाता है, जिसमें रास्ते पर आगे जाकर मुड़कर लौटने की जरूरत नहीं पड़ती। विकास के कारण बढ़ती आजादी ने हर एक को कुछ भी बोलने, देखने और करने का अधिकार दे दिया है, लेकिन आजादी के इस मोड़ पर कर्तव्य भुलाए जा रहे हैं। ड्राइविंग चाहे राजनीतिक, धार्मिक या पारिवारिक हो, ऐसी होनी चाहिए कि नियंत्रण बरकरार रहे। स्थितियों की आवाजाही उचित गति से चलती रहे। जहां मुड़ना है, उस जगह को भूला न जाए, ताकि आगे जाकर वापस आना न पड़े। None

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