कुछ समय पहले एक खबर आई थी कि एक तकनीकी संस्थान में काम करने वाला नौजवान कभी-कभार सड़क पर आटो चलाता है। उसके अनुसार, ऐसा वह अपनी बेचैनी और ऊब को कम करने के लिए करता है और खुशी-खुशी आटो चलाता है, सवारी को भी गंतव्य तक पहुंचाता है। ऊब होने और उससे लड़ने का यह मनोभाव सचमुच अलग और विचारणीय है। आखिर मन को इतनी ऊब किसलिए होने लगती है? यह टालने या नजरअंदाज कर देने की बात नहीं है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि अचानक ही हर चीज से मन का उचट-सा जाना इन दिनों एक सामान्य बात हो रही है। ऐसा लगभग हर किसी के साथ होता है। इन दिनों कुछ लोग अपनी दिनचर्या से इतने परेशान हो रहे हैं कि उनको हर बात से अरुचि-सी होने लगी है। जब भी कोई चर्चा की जाए तो अधिकांश का जवाब यही होता है कि सुबह चाय और काफी गटक ली, नहाया, नाश्ता हो गया, वेब सीरीज देख ली, फोन लेकर सारे सोशल मीडिया के मंच पर जाकर दुनियाभर की चीजें देख लीं, अब मन अजीब हो रहा है। इसका कारण साफ लगता है। हमको एक ही बटन दबाने से सौ चैनल मिल रहे हैं। कुछ खरीदना है तो एक पल में सौ तरह की दुकान, सौ तरह का सामान हाजिर। इससे होता यह है कि यह मन बावला होने और भटकने लगता है। इसीलिए मन को झुंझलाहट होती है। जरूरत से अधिक मनोरंजन और सुख-सुविधा भी मन को उचाट कर देती है। सुकरात ने कहा था कि अति हमेशा दुख देती है। कोई चीज जरूरत से अधिक मिल जाती है तो वह खुशी नहीं, बेचैनी देती है। रिश्तेदारी से अधिक अपनेपन के रिश्ते होते हैं मजबूत, आपाधापी के दौर में आत्मकेंद्रित होना नहीं है सही यों मन का उचाट हो जाना उनके साथ भी अधिक होता है, जो लोग जीवन में कुछ करने की ख्वाहिश रखते हैं, मगर वहां तक नहीं पहुंच पाते, जहां पहुंचना है। तब उनको भी ऊब तथा बेचैनी होने लगती है। अमेरिका के एक प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन ने भी कहा था कि खुश मानव के दो दुश्मन उदासी और बोरियत होते हैं। मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड के शिष्य मनोचिकित्सक ओटो फेनीशेल ने उनके साथ मिलकर इस ऊब और बोरियत पर अनगिनत प्रयोग किए थे। ओटो फेनीशेल बोरियत के विस्तारित सिद्धांत को विकसित करने वाले पहले मनोविश्लेषकों में से एक थे। उनका मानना था कि सामान्य बोरियत तब पैदा होती है जब हम वह नहीं कर सकते जो हम करना चाहते हैं या जब हम कुछ ऐसा करते हैं, जो हम नहीं करना चाहते हैं। दोनों ही स्थितियों में, कुछ अपेक्षित या वांछित नहीं होता है। यहां हमें खुद पर गौर करने की आवश्यकता होती है। जरा-सा खुद पर विचार हमको बोरियत की जड़ तक ले आता है। तब समाधान भी मिलता है। कई बार जो ऊब जैसा लगता है, वह वास्तव में उस कार्य से बचने का बहाना होता है, जिसे हम करना ही नहीं चाहते। हालांकि यह भी सच है कि बोरियत से उसी प्रकार की मानसिक थकान होती है जैसे निरंतर एकाग्रता वाले कामों में होती है। कभी-कभी ऊब महसूस होना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह स्थायी मनोदशा बन जाए तो चिंताजनक है। ऊबना नकारात्मक विचारों की जड़ है। इससे व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगता है। कार्यक्षमता और रिश्तों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसकी वजह से व्यक्ति अवसाद में भी जा सकता है। लगातार एक जैसा काम करने पर एक स्थिति यह आती है कि हम अपना काम कर ही नहीं पाते और इसके कारण अन्य कामों में मन नहीं लगता। तब भी हमको ऊब होने लगती है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में भी यह पाया गया है कि ऊब महसूस करने की मानसिक स्थिति का जन्म बहुत छोटी उम्र से हो जाता है और अप्रिय लगने के बावजूद यह सीखना आवश्यक है कि रचनात्मक और उत्साह से कैसे रहें। प्रकृति के साथ सृजन का सरोकार, मशीनी युग में लोगों का रचनात्मक होना अनिवार्यता ऊबने या बोरियत से कुछ मनोभाव सीधे-सीधे जुड़े हैं। मिसाल के तौर पर झुंझलाहट, बिखराव, अकेलापन, क्रोध, दुख और चिंता आदि। लगातार ऊबते रहने वाले व्यक्ति ज्यादा खाते हैं। मादक पदार्थों के सेवन सहित धूम्रपान और अपराध जैसे दुर्गुणों के बढ़ने की आशंका भी रहती है। अगर कोई ऊब रहा है तो एक बार एकांत में बैठकर उसे खुद को परिभाषित करना चाहिए। यह सोचना चाहिए कि उसे सबसे अच्छा क्या लगता है। यानी खुद को अच्छे लगने वाले कामों की पहचान करने की जरूरत है। फुर्सत के पलों में मोबाइल या स्मार्टफोन में गुम होने के बजाय कोई अच्छी किताब पढ़ी और अपने दोस्तों से बातचीत की जा सकती है। फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं और गमलों को पेंट किया जा सकता है। घर की व्यवस्था और सजावट को बदलकर देखना चाहिए। हर वह काम जो सुखद तब्दीली दिखाए, ऊब से बाहर निकलने में मदद करेगा। फूलों के पौधे भी इसीलिए सुझाए जाते हैं कि जब पौधे पर कलियां आती हैं, फूल खिलते हैं, तो मन प्रसन्न होता है। ऊबाऊ जीवनशैली को बदल लेना चाहिए। महापुरुषों की जीवन गाथा को पढ़ने से उम्मीद मिलती है। कुदरत की सेवा करने से लेकर सार्वजनिक जगह पर जाकर गपशप करना भी राहत देती है। राह चलते किसी अनजान से बात होने पर भी बहुत खुशी मिलती है। कोई नई आदत पाली जा सकती है। नाचना, गाना, चित्रकारी, बागवानी आदि। बोरियत लगभग सभी को महसूस होती है। इसलिए इसे महसूस करते हुए डरने की जरूरत नहीं, मगर इसे नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए। इसे ठीक से देख कर इसकी आग पर अपने शौक और हुनर का शीतल जल छिड़क देना चाहिए। ऊब दुम दबाकर भाग जाएगी। None
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