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दुनिया मेरे आगे: खुश और आनंद में रहना है तो प्रशंसा के साथ आलोचना को भी स्वीकारें, आत्मबल से तय करें अपनी राह!

हर व्यक्ति का स्वभाव एक दूसरे से अलग होता है। कुछ लोगों को कोई भी बात कह दी जाए, उन पर प्रभाव नहीं पड़ता है। वे अपने व्यक्तित्व के आसपास अदृश्य रूप से एक आभामंडल बना कर रखते हैं, जिसमें कोई भी सकारात्मक या नकारात्मक बात उनकी आज्ञा लेकर ही उसमें प्रवेश करती है और उन तक पहुंचती है। जो विचार उन्हें उपयोगी और सार्थक लगते हैं, उन्हें वे ग्रहण करते हैं और बाकी अपनी नजर में व्यर्थ की बातों को बिल्कुल वैसे ही झटक देते हैं, जैसे चिकनाई पर से पानी फिसल जाता है। वे हर बात को अपनी बुद्धि के तराजू पर तौलते हैं और जो उन्हें उचित-अनुचित लगता है, उसके अनुसार व्यवहार करते हैं। वैसे लोग मानसिक रूप से बहुत स्थिर और सबल होते हैं। उन्हें यह प्रभाव नहीं पड़ता है कि कोई उनके बारे में अच्छा या बुरा क्या कह रहा है। क्या सही है और क्या गलत है, इसका निर्णय वे खुद लेते हैं। अपने विवेक से तर्क-वितर्क करके ही किसी निर्णय पर पहुंचते हैं। उन्हें अपने ऊपर पूर्ण रूप से विश्वास रहता है और यह स्थिर मन मस्तिष्क उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में सफल बनाता है। दूसरी ओर, कुछ लोग किसी के द्वारा कही गई बातों से तुरंत ही प्रभावित हो जाते हैं। घर-बाहर, परिवार और मित्र-समाज में कोई भी कुछ कह दे, तो वे उस बात को लेकर या तो अत्यधिक प्रसन्न या चिंतित हो जाते हैं, कुछ उनके बारे में अच्छा कहा जाए तो उत्साहित होते हैं, लेकिन जरा भी उनके विरुद्ध कुछ कह दिया जाए तो वे बहुत दुखी होते हैं और उनका आत्मविश्वास डांवाडोल होने लगता है। वे सिर्फ अपने लिए कही गई बातों से अपने को दुखी नहीं करते हैं, बल्कि उनके समूह में भी कहीं कोई बात कहीं जाए तो उसे अपने ऊपर लेकर खुद को दुखी कर लेते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें ही लक्ष्य करके कहा गया है और अपने मन में अवसाद और निराशा के पहाड़ खड़े कर लेते हैं। इसके बाद फिर अपना आत्मविश्वास एकदम शून्य कर लेते हैं। इस तरह की छोटी-छोटी बातें उनके मन को दुखी कर देती हैं और इसके परिणामस्वरूप वे जिस काम को कुशलतापूर्वक कर लेते हैं, उसमें भी वे पिछड़ने लगते हैं। चाहे वह घर के काम हों या चाहे वह उनके व्यावसायिक कार्यस्थल के काम हों। यह समझा जा सकता है कि उनके ऊपर सकारात्मक और नकारात्मक बातें कितना प्रभाव डालती हैं। यह सब इसलिए होता है कि ऐसे लोग अपनी प्रशंसा और आलोचना से प्रभावित होते हैं। अगर हम सब समाज का हिस्सा है तो प्रशंसा और आलोचना कोई असामान्य बात नहीं है। हम किसी के नजरिए से अच्छे लग सकते हैं, तो किसी को हमारे कार्य बुरे लग सकते हैं। इस स्थिति में कुछ लोग हमारी आलोचना कर सकते हैं और कुछ लोग प्रशंसा भी कर सकते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें जिस प्रकार अपनी प्रशंसा को लेना चाहिए, उसी प्रकार अपनी आलोचना को भी स्वीकार करना चाहिए। सबसे अच्छा तो यही है कि दोनों को हम स्थिर बुद्धि से स्वीकार करें और न ज्यादा प्रसन्न हों, न परेशान या प्रभावित हों। अगर कोई हमारी आलोचना करता है तो वह स्थिति मंथन करने की होती है। यह सोचने की जरूरत होती है कि उस आलोचना का आधार क्या है और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है। चिंतित होने और मंथन करने में बहुत अंतर होता है। मंथन करने से किसी बात के अन्य पहलुओं का हमें पता चलता है। वहीं चिंतित होने से हम अपनी स्वयं की दिशा और दृष्टि भी खो देते हैं। जब हम समाज में रहते हैं तो हमारे बहुत सारे सामाजिक रिश्ते रहते हैं। कुछ लोग हमारे शुभचिंतक रहते हैं, जो हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं, तो कुछ लोग ऐसे भी हमारे आसपास जरूर रहते हैं, जिनसे मिलने के बाद हमारे अंदर बहुत सारी नकारात्मक बातें आ जाती हैं। करना बस इतना चाहिए कि हमें तत्काल नकारात्मक लोगों को अपने जीवन से बाहर कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे लोगों का लक्ष्य ही होता है चारों तरफ नकारात्मकता फैलाते रहना। यह समझना मुश्किल है कि ऐसे लोग किन परिस्थितियों में इतने ज्यादा नकारात्मक हो जाते हैं, लेकिन ऐसे लोग न खुद प्रसन्न रहते हैं, न दूसरों को प्रसन्न रहने देते हैं। जिसके भी संपर्क में रहते हैं, उसके मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक बात करके विषैला बनाते रहते हैं। हालांकि एक समय आता है जब इस तरह का व्यक्ति अवसाद रूपी जहर से अपनी सहज सोच विचार की क्षमता भी खो देता है। अगर हमें अपने शरीर और मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखना है, तो किसी की नकारात्मक बातों से अपने आपको प्रभावित नहीं होने देना चाहिए और न ही छोटी-छोटी बातों पर अपने मन को चिड़चिड़ा बनाकर खुद को दुखी करना चाहिए। अगर छोटी-छोटी बातें हमें प्रभावित करती हैं तो यह सोचने की जरूरत है कि समस्या का समाधान कहीं बाहर न होकर हमारे अंदर है। हमें सूक्ष्म आत्म अवलोकन की जरूरत है। खुद को अंदर से इतना सबल बनाना चाहिए कि किसी की प्रशंसा और आलोचना हमें प्रभावित ही न कर पाए। हम दुनिया के लोगों का स्वभाव बदल नहीं सकते हैं, लेकिन अपने आप में परिवर्तन करके अपने मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा अवश्य कर सकते हैं। अगर मानसिक स्वास्थ्य सही रहेगा, आत्मबल का साथ रहेगा तो समाज में अपने मान-सम्मान, अपने व्यक्तित्व की सुरक्षा हमारा मानसिक स्वास्थ्य ही कर लेगा। None

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