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दुनिया मेरे आगे: शरीर की अद्भुत क्षमता, कैसे स्वस्थ रखता है ‘आटो फजी’ तरीका, कौन सा खाना कब पचता है, समझें उसका गणित

इंसानी शरीर छोटी-बड़ी बीमारियों को ठीक करने की समूची क्षमता से लैस है। वैज्ञानिक शोध भी जाहिर करते हैं कि शरीर की हर सूक्ष्म कोशिका में भी एक पूरा ‘रीसाइक्लिंग कंपाउंड’ या कहें पुनर्चक्रण यौगिक बना होता है। कोशिकाओं में मौजूद पचास से ज्यादा एंजाइम पेट में खाने को पचा कर न केवल पूरी तरह से खाने की क्षमता रखते हैं, बल्कि नई कोशिका में तब्दील करने का हुनर भी जानते हैं। जानकार बताते हैं कि एंजाइम कोशिका भोजन पाचन सहित चयापचय के तमाम पहलुओं को उत्प्रेरित करती है। ये छह महीने पुराने गले-सड़े जहरीले होते अपचित खाद्य अंशों को भी खाने तक में सक्षम हैं। शरीर की वसा को भी खा या पिघला कर खत्म सकते हैं। इस हद तक कि नसों की रुकावटों को भी हटा कर खून का दौरा सुचारु कर सकते हैं। इनमें शरीर में मौजूद बुरे बैक्टीरिया, विषाणुओं, मृत, प्रोटीन बनाना बंद कर चुकी या फिर दोषपूर्ण प्रोटीन बनाने वाली कोशिकाओं को पूरी तरह से बाहर निकाल फेंकने का दमखम भी है। कुछ बिगड़ी कोशिकाएं बेकाबू व्यवहार करते-करते लाइलाज बीमारी का रूप अख्तियार कर लेती हैं। लाइलाज इसलिए क्योंकि चिकित्सा विज्ञान फिलहाल ऐसे रसायन नहीं बना सका है, जिनसे इनका शत-प्रतिशत इलाज हो सके। हालांकि शरीर में समूची समझ और क्षमता है कि खुद-ब-खुद किसी भी बीमारी को ठीक कर सके। सवाल उठता है कि शरीर में मौजूद तत्त्व बीमारियों को दुरुस्त कर सकते हैं, तो फिर करते क्यों नहीं! इन्हें रोक कौन देता है? वास्तव में इंसान खुद ही रोक रहा है। तोक्यो इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी के नोबेल विजेता वैज्ञानिक योशिनोरी ओशुमी की 2016 के शोध का निष्कर्ष है कि ‘आटो फजी’ नामक वैज्ञानिक प्रणाली के जरिए इंसानी शरीर की कोशिकाएं खुद को खाने लगें, ऐसी व्यवस्था में पहुंचना अत्यंत फायदेमंद है। ‘आटो फजी’ ग्रीक शब्द है। आटो यानी खुद-ब-खुद और ‘फजी’ मायने खाया जाए। इस मरम्मत या रखरखाव की प्रणाली को कैसे सुचारु रखा जाए? इस सवाल का हैरान करने वाला जवाब है- खाने का नागा करके! लेकिन बचपन से ही बताया गया है कि भोजन शरीर को जीवित रखने के लिए अति आवश्यक है। जैसे वाहन को चलने के लिए ईंधन की जरूरत होती है, वैसे ही शरीर को भोजन के तौर पर ऊर्जा चाहिए। दरअसल, खाना खाते ही ‘आटो फजी’ चालू नहीं होता, क्योंकि विभिन्न खाद्य पदार्थों को पचाने में अलग-अलग वक्त लगता है। मिसाल के तौर पर, फल खाने के आधे से डेढ़ घंटे में पचते हैं। कच्ची सब्जियों को पचाने में दो से तीन घंटे लगते हैं। सब्जियों को पका कर खाएं, तो पाचन अवधि बढ़ कर तीन से पांच घंटे हो जाती है। चावल और गेहूं की रोटी खाने से पचने के बीच छह से आठ घंटे लग जाते हैं। जबकि पकाए हुए गोश्त को पचाने में चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। अगर सुबह नौ बजे ऐसा कुछ खाया है, जिसे पचाने में आठ घंटे लगते हैं और फिर एक बजे दोपहर का भोजन कर लिया, यानी अभी तो पिछली पाचन प्रक्रिया जारी है, तो और खा लिया। फिर शाम चाय पी, रात फिर नौ बजे खाना। खाने की जल्दबाजी के चलते पाचन पूरा न होने की वजह से पुरानी कोशिकाओं के बदले नई कोशिकाएं बनने की गति नहीं बन पाती, जितनी जरूरत है। नतीजतन सुस्ती घेरे रहती है, त्वचा चमकहीन हो जाती है, मधुमेह या दिल की तकलीफ उभरने लगती है। आखिर कैसे ‘आटो फजी’ यानी कोशिकाओं के रखरखाव की प्रक्रिया शुरू हो? उपवास रखना सबसे बेहतर तरीका है। शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने किसी न किसी धर्म-आस्था से उपवास जोड़ दिए हैं। जबकि वास्तविकता है कि व्रत की जरूरत भगवान से कहीं ज्यादा इंसान की सेहत को है। इसलिए हफ्ते में एक बार चौबीस घंटे के खाने-पीने के नागे के उपवास से शुरुआत की जा सकती है। मुश्किल लगे, तो पानी, नीबू पानी या फलों का जूस पीकर एक दिन रहा जा सकता है। शरीर थका-थका लगे या सिर दर्द होने लगे, तो चिंता नहीं करनी चाहिए। खुद को बीमार मत मान लेना चाहिए। ऐसे मामूली दुष्परिणाम उपवास रखने की वजह से ही होते हैं। झेल नहीं पा रहे, तो फल खा लेना चाहिए। हफ्ते में एक बार उपवास नहीं रख पा रहे, तो पखवाड़े या महीने या फिर तिमाही में ही एक बार रख लेना चाहिए। दूसरा तरीका है कि समयबद्ध तौर-तरीके से खाया-पिया जाए। रात सात या नौ बजे खाना खा लिया जाए, तो अगले दिन सुबह सात या नौ बजे ही नाश्ता करना चाहिए। इस तरीके से कोशिकाओं की मरम्मत और रखरखाव का काम अपने आप चालू हो जाएगा। धीरे-धीरे खाने के अंतराल के घंटों को बढ़ाते जाया जा सकता है। कहते हैं कि भोजन रात सूर्यास्त से पहले और सुबह सूर्योदय के बाद करना चाहिए। बीमारों को भी तो डाक्टर कम और हल्का-फुल्का खाने की सलाह देते हैं। दवा के साथ कम खाना भी शरीर को चंगा करने में अहम रोल निभाता है। बीमार होते ही पहले भूख मर जाती है, ताकि कम खाया जाए, जिससे शरीर ‘आटो फजी’ की राह पर चल पड़े, सही होने की रफ्तार बढ़ने लगे। खाली पेट रहने से शरीर ही खुद को ठीक करने की मशीन बन जाता है, लेकिन खयाल रहे कि दस दिनों तक लगातार कतई भूखे नहीं रहना चाहिए। अगर कोई ज्यादा दिन भूखे रहे, तो कोशिकाएं बुरे प्रोटीनों को खत्म करने के बाद शरीर को ही खाने लग जा सकती हैं। None

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