ARTS-AND-LITERATURE

दुनिया मेरे आगे: तनावपूर्ण जिंदगी जीने के आदी होते जा रहे लोग, चिंता की गुत्थियां को समझना टेढ़ी खीर

आज पूरी दुनिया द्रुत गति से विकसित हो रही है। आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ लोग सुविधा संपन्न भी हो गए हैं। सुविधापरस्ती की अंधाधुंध होड़ के बीच चिंता और उससे उपजे तनाव की बात भी जोर-शोर से चल रही है। ढेरों प्रश्न उठाए जा रहे हैं कि चिंता क्या है, चिंता होती क्यों है, इसके क्या कारण हैं, इससे कैसे दूर रहा जाए? इन्हें समझना इतना कठिन क्यों है? चिंतक भी चिंता में हैं। वे समझाते हैं कि चिंतन ही चिंता से बचने का उपाय है। चिंतन की गहराई में उतरे बिना चिंता को नहीं समझा जा सकता है। परेशान लोग नए प्रश्नों और शंकाओं की झड़ी लगा देते हैं। चिंतन में कैसे उतरा जाए? क्या चिंता से चिंतन में उतरा जा सकता है? दरअसल, चिंता जैसी गूढ़ गुत्थी सुलझाना और जान पाना सदैव अधूरा ही है। यों चिंताओं को जानना बहुत आसान मालूम पड़ता है। चिंताएं हर व्यक्ति को होती हैं। हमारे इर्द-गिर्द चिंता की कमी नहीं है। वे बहुतायत में व्याप्त हैं। इसलिए ऐसा मान लिया जाता है कि हम चिंताओं को बखूबी जानते हैं। मगर ऐसा नहीं है। दुनिया में कई लोग, न केवल चिंताओं से घिरे हुए हैं, बल्कि उसकी कैद में दिखाई पड़ते हैं। वे परेशान हैं, छटपटा रहे हैं, चिंता से मुक्ति का मार्ग खोज रहे हैं। बाबाओं के चक्कर काट रहे हैं, नींद की गोलियां फांक रहे हैं, नशे का सहारा ले रहे हैं। उनकी हंसी कहीं खो गई है। हल्की-सी मुस्कान भी होंठों पर नहीं तैरती दिखती। चेहरे पर खुशी नहीं झलकती। मानो उनकी हंसी, खुशी और मुस्कुराहटों पर चिंताओं की पहरेदारी बैठा दी गई हो! आधुनिकता की भागदौड़ से भरी जीवनचर्या में चिंता का होना स्वाभाविक लगता है। लोग चिंता में घिरे तनावपूर्ण जिंदगी जीने के आदी होते जा रहे हैं और असमय काल के गाल में समा जाते हैं। आज पत्र-पत्रिकाएं, टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया भी चिंता को लेकर चिंता में दिखते हैं। ये सिखाने में जुटे हैं कि चिंता से कैसे बचें! इनमें हर बार वही बातें, विन्यास, चिंतकों के वही उद्धरण, बचाव के वही तरीके और उपाय दोहराए जाते हैं, लेकिन लोगों के जीवन से चिंता कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। वे और भी घनीभूत हो रही हैं। वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया के मंच ऐसे कथित ज्ञान से अटे पड़े हैं। ये मंच ऐसे ज्ञान को बांटने के मामले में अग्रणी हैं। इनमें सहारा खोजते लोग समय बे-समय चिंताओं से निपटने के ज्ञान को एक-दूसरे को बांट भी रहे हैं। इसके बावजूद न चिंता कम होती दीख रही है और न ही किसी के समझ में आती है! तकनीक ने बढ़ा दी बीमारियां, इंसानियत धीरे-धीरे हो रहा खत्म चिंता को समझना टेढ़ी खीर है। इसे ठीक-ठीक समझना भी मानो चिंता का ही विषय है। चिंता निराकार होती है। इसका कोई रूप या आकार-प्रकार नहीं होता। इसकी कोई भौतिक अवस्था नहीं है। इसे छूकर देखना संभव नहीं है। फिर भी इसके बारे में बड़े मजेदार तथ्य हैं। चिंताएं छोटी-बड़ी होती है। जरूरी नहीं है कि जो विषय किसी एक व्यक्ति के लिए चिंता का कारण है, वह दूसरे के लिए भी दुखदायी हो। दूसरे व्यक्ति के लिए वह प्रसन्नता का विषय भी हो सकता है! एकांत में रहने वाले लोग भीड़ की चिंता करते हैं, जबकि भीड़भाड़ में रहने वाला व्यक्ति एकांत से डरता है। हमारे आसपास ऐसे अनेक परिवार हैं, जिनके बच्चे अमेरिका में रहते हैं। एक परिवार के मुखिया अपने बच्चों के पास विदेश में इसलिए नहीं रह पाते कि उन्हें अकेलेपन से डर लगता है। वहां की जीवनशैली ऐसी है। वे वहां दो महीने रुकने की योजना के साथ निकलते हैं और हफ्ते दस दिन में उकताने लगते हैं। वहीं दूसरे परिवार के दंपति पूरे छह महीने रुककर आनंद का अनुभव करते हैं। उन्हें वहां की सुकून और शांति रास आती है। छह महीने में अपने देश लौटते हुए बहुत उदास हो जाते हैं। मानव जीवन में ज्ञानेंद्रियों की यात्रा, भाषाओं से ही समूचे ज्ञान का हुआ उदय बहरहाल, चिंता से बचने के उपाय व्यक्ति को खुद ही खोजने होंगे। सामान्य तौर पर जो हमारी पहुंच या नजरों से परे है, वही चिंता के कारण होते हैं। अधिकतर चिंताओं का संबंध भूत और भविष्य से हुआ करता है। भूतकाल बीत चुका है, भविष्य अनदेखा है। इन्हें कुछ किया नहीं जा सकता है, सिवा सोचने के। बस चिंता की जा सकती है। इसलिए चिंता से बचने के लिए वर्तमान में जीने की बात कही जाती रही है। मान लिया जाए कि हम किसी हाइवे या उच्च मार्ग पर चल रहे हैं। मार्ग से गुजरते हुए पीछे किसी दुर्घटना पर नजर पड़ जाए. तो आगे रास्तों में स्वाभाविक तौर पर अफरातफरी होगी। पुलिस व्यवस्था की गहमागहमी हो सकती है। ऐसी स्थिति में आगे और पीछे की बातें ध्यान में रखी जा सकती हैं, उसकी चिंता में घुलने की जरूरत नहीं। रास्ते में जहां तक नजर जाती है, उसे सोचना चाहिए। जो दिख रहा, उसके प्रति सचेत रहा जाए। यही चिंता से मुक्ति का मार्ग है। वर्तमान के प्रति चेतना, यही साक्षी भाव है। चिंता को मिटाना जरूरी काम को निपटाने से होगा। अगर प्रयास के बाद भी काम न निपटे तो यह परिस्थितिजन्य हुआ। इसे स्वीकार करना चाहिए। सही समय की प्रतीक्षा करना चाहिए। यही अपने हाथ में है। दौलत और दिखावे की दौड़ में हाशिये पर संवेदनशीलता, क्या हम असल में रह गए हैं इंसान बहुत-सी गैर जरूरी चिंताओं से मुक्त होने की बात कही गई है। दरअसल, व्यक्ति की कुल चिंताओं में से गैरजरूरी चिंताओं का अनुपात ही ज्यादा होता है। असल चिंताएं कम होती हैं। बेमतलब की चिंता को त्यागने की जरूरत है। बस वर्तमान का ध्यान रखा जाए। अच्छे पठन-पाठन से भी चिंताओं से बचा जा सकता है। सुलझी सोच के लोग चिंता में नहीं घुलते, चिंताओं से नहीं घिरते, क्योंकि यह चिंता की बात है। None

About Us

Get our latest news in multiple languages with just one click. We are using highly optimized algorithms to bring you hoax-free news from various sources in India.