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दुनिया मेरे आगे: एक बार गुस्सा और क्रोध को छोड़कर देखें, खुशियों और आनंद से भर जाएगा जीवन, खुद बनाएं स्वभाव का सांचा

आम जन के बीच एक प्रचलित कहावत है कि स्वभाव और हस्ताक्षर, दोनों नहीं बदलते। यह इस अर्थ में सही है कि मानव स्वभाव व्यक्ति को जन्म के बाद परिवार और समाज में पालन-पोषण के दौरान मिलता है, यह प्रकृति का दिया हुआ उपहार है। इसकी तासीर इंसान को ताउम्र नहीं छोड़ती। हालांकि परिस्थितियों की वजह से व्यवहार में बदलाव दिख सकता है, जिसे स्वभाव से जोड़ा जाता है, लेकिन यह भी एक आदर्श स्थिति है कि जो जैसा है, उसे वैसा ही रहना चाहिए। उसे खुद को जबरन नहीं बदलना चाहिए। खासतौर पर तब, जब उसका व्यक्तित्व किसी अन्य के जीवन में गैरजरूरी हस्तक्षेप न साबित हो रहा हो। दरअसल, इंसान का स्वभाव इसकी विशेषता और पहचान है। स्वभाव वैसे भी हमेशा कायम रहने वाला गुण है। जैसे अग्नि का गुण दहन करना है। वह अपना स्वभाव किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ती है। उसी तरह इंसान अगर किसी अन्य के लिए या अपने लिए बाधक नहीं है, तो उसे भी तटस्थ रहना चाहिए। जल का स्वभाव शीतल होना है, लेकिन जैसे ही वह अग्नि के संपर्क में आता है, तो उसे भी अपने साथ ठंडा कर लेता है। यानी अग्नि को अपने जैसा बना लेता है। भले ही शुरू में उसका ताप बढ़ता हो। प्रकृति में विभिन्न प्रकार की वनस्पति, पहाड़, पर्वत, नदी, झरना, तारे-सितारे, खनिज, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, हीरे-मोती आदि के भिन्न-भिन्न प्रकार के गुण पाए जाते हैं और इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण प्रकृति में अपनी-अपनी अलग पहचान रखते हैं। पक्षी आकाश में विचरण करते हैं, मीन जल में। यह इनकी पहचान है। किसी गोताखोर को हम आसानी से मछली की की तरह कह सकते हैं कि देखो… उसकी तैराकी बिल्कुल मछली की तरह है। उसी प्रकार शेर की प्रवृत्ति आक्रामकता होती है। वह किसी अन्य प्राणी को देखते ही भूख होने पर उस पर हमला कर सकता है। शेर के नाम से ही एक प्रकार का भय उत्पन्न होता है। कई बार हम किसी के व्यक्तित्व में ताकतवर प्रभाव की वजह से उसकी तुलना शेर से कर सकते हैं। ‘अवधूत गीता’ में स्वभाव को ही ब्रह्म तत्त्व कहा गया है। कहने का आशय यह है कि संज्ञा सूचक वर्ण में ब्रह्म तत्त्व छिपा है। कोई मनुष्य दयालु है, कोई संवेदनशील, कोई गुस्सैल तो कोई स्वार्थी। कोई हरदम मदद के लिए तैयार रहता है तो कोई किसी को कष्ट पहुंचाने की फिराक में रहता है। यह सब मानवीय गुण है। मनुष्य के स्वभाव से ही उसके व्यक्तित्व का निर्धारण होता है। जिस व्यक्ति का स्वभाव सरल और मिलनसार होता है, वह सभी का प्रिय होता है। सब उसकी तरफ आकर्षित होते हैं, उससे दोस्ती करना चाहते हैं और आपसी अच्छा व्यवहार बनाना चाहते हैं। न केवल एक बार या कुछ समय को ध्यान में रख कर, बल्कि हमेशा के लिए। वैसे भी अच्छी दोस्तियों की उम्र बहुत लंबी होती है। अच्छे कर्म इंसान की पहचान बन जाते है। ईश्वर ने मानव को शरीर के साथ बुद्धि का वरदान दिया है। यही बुद्धि और मन इंसान को सही गलत में भेद करना सिखाते हैं। इसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति का स्वभाव झगड़ालू है, तो आमतौर पर सब लोग उससे दूरी बनाकर चलते हैं। अगर वह व्यक्ति अपनी जिंदगी में आसपास लोगों का साथ चाहता है तो उसे अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा। हमारे भीतर सकारात्मक व्यवहार के आते ही हमारे व्यक्तित्व में निखार जाता है। हमारी प्रकृति चाहे कैसी भी हो, मगर व्यवहार हमेशा सही होना चाहिए। अगर हम सबके साथ सकारात्मक रहें तो हमारी बड़ी से बड़ी मुश्किलें आसानी से हल हो सकती हैं। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि किसी महफिल में सूट-बूट पहनकर कोई व्यक्ति शिरकत करता है। सब उसके परिधान और आकर्षक चेहरे से प्रभावित होते हैं। महफिल में जमा लोग सब उससे हाथ मिलाते हैं। अपना परिचय देते है। उनमें कुछ लोग इस तरह प्रभावित होते हैं कि उन्हें घर आने का भी आग्रह करते हैं। कुछ लोग उसके साथ दोस्ती भी कर लेते हैं। मगर इस बात की कल्पना करें कि कुछ देर के बाद वही व्यक्ति अचानक उग्र हो जाए और अभद्र भाषा का प्रयोग करने लगे। कारण सिर्फ यह हो कि खाना परोसने वाले वाले किसी बैरे के दिए गए नींबू पानी में नींबू के दो बीज तैरते पाए गए। वह व्यक्ति इसे अपनी शान के खिलाफ समझ ले और कांच का गिलास जमीन पर दे मारे। साथ ही बैरे को थप्पड़ भी जड़ दे। उसका आचरण असभ्य व्यवहार में बदल जाए। इसके बाद स्वाभाविक रूप से उसके बदले रूप और भाव भंगिमा को देखकर लोग उससे अपने आप ही पीछे हट जाएंगे। बैरे का अपमान करके वह व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ समझ सकता है, लेकिन उसे शर्म तब महसूस होगी, जब महफिल जमाने वाला मेजबान बैरे से पूछे कि ‘क्या तुम ठीक हो’ और साथ ही झुक कर जमीन पर गिरे हुए कांच के टुकड़ों का उठाने में उसकी मदद करने लगे। हम अपने से छोटे या कम हैसियत वाला माने जाने वाले लोगों के साथ मधुर व्यवहार अपनाते हैं तो इस तरह खुद को श्रेष्ठ बनने में अपनी मदद करते हैं। ऐसी बातें हमें बेहतर इंसान बनाती हैं। इसके अलावा, ऐसे व्यवहार से छोटी-बड़ी उलझनें भी सुलझ जाती हैं। मन शांत रहता है, जिससे इंसान खुश रहता है। इंसान के नैसर्गिक गुण ही उसे लोकप्रिय बनाते हैं। मनुष्य बने रहने के लिए सत्कर्म और सद्व्यवहार जरूरी है। वरना सब कुछ बिखरते देर नहीं लगती। None

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